इंसान के जिस्म में पाए जाने वाले हानिकारक बैक्टीरिया दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता यानी अपने भीतर ड्रग रेजिस्टैंस विकसित कर लेते हैं तो उन पर लगाम लगाना चिकित्सा जगत के लिए मुश्किल हो जाता है. चिकित्सा विज्ञान ऐसे बैक्टीरिया को सुपरबग की संज्ञा देता है और ऐसे ही सुपरबग की मौजूदगी की चेतावनी हाल में आईआईटी (दिल्ली) और ब्रिटेन की न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने सा झा रूप से भारत के तीर्थस्थलों के बारे में दी है. इन वैज्ञानिकों ने देश के प्रमुख तीर्थस्थलों (हरिद्वार और ऋषिकेश) में पिछले साल मई व जून में एक अध्ययन किया और पाया कि इस दौरान गंगा में डुबकी लगाने आए लाखों लोगों के लिए ऐंटीबायोटिक प्रतिरोधी सुपरबग का खतरा करीब 60 गुना ज्यादा बढ़ गया था.

धार्मिक तीर्थों पर सुपरबग की जांचपड़ताल में जुटे न्यूकैसल यूनिवर्सिटी के एनवायरमैंटल इंजीनियर प्रोफैसर डेविड ग्राहम ने इस बारे में जानकारी दी है कि इन तीर्थस्थलों पर नदी के पानी के बैक्टीरिया में एक खास तरह का प्रतिरोधी जीन बीएलएनडीएम-1 मौजूद रहता है जो ऐंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर कर देता है. ऐसे में, यदि किसी वजह से गंगा में डुबकी लगाने वाले लोग ठंड या सर्दीजुकाम जैसे संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं तो उन का इलाज मुश्किल हो जाता है क्योंकि उन पर ऐंटीबायोटिक दवाएं काम ही नहीं कर पाती हैं.

खतरा सिर्फ दवाओं के बेअसर होने का नहीं है, बल्कि सुपरबग के ताकतवर होते जाने का है क्योंकि ये नई से नई दवाओं के खिलाफ भी प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर लेते हैं जिस से मामूली बीमारियों के भी महामारी में बदल जाने का संकट खड़ा हो जाता है. यहां अहम सवाल यह है कि क्या सुपरबग साफसफाई की कमी या विषैले प्रदूषण की पैदावार हैं या फिर उन्हें दुनिया में ऐंटीबायोटिक के बढ़ते इस्तेमाल ने पैदा किया है.

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