हिंदी के एक मशहूर लेखक का कहना है कि आप चाहे कितनी भी व्यस्त क्यों न हों, यदि अपने लिए 24 घंटों में से एकाध घंटा नहीं निकाला तो क्या रहेगा साथ में? रूखे हाथ, बिना तराशे नाखून, रूखासूखा चेहरा, न बिंदी, न काजल, न बिछुए. हम औरतें दिन भर में अपने लिए कम से कम एकाध घंटा तो निकाल ही सकती हैं, जिस में हलकीफुलकी संगीत की स्वरलहरी हो, गजल का आनंद हो, शेरोशायरी हो, सुस्ताना हो, हाथपैरों की मालिश हो, फोन पर बतियाना हो या फिर कुछ पढ़ना. बस वह वक्त सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा हो. सीमा को तब बड़ी हैरत हुई कि फेसबुक अकाउंट खोल अभीअभी रात के 12 बजे विदेश में रहते जो संदेश उस ने अपनी देवरानी को दिया उस का झट से जवाब भी आ गया. हैरानी इस बात की हुई कि वह तो खुद ही घर का काम करती है और फिर नौकरी भी करती है. उसे मेरे मैसेज का जवाब देने के लिए समय कैसे मिल गया? पूछने पर पता चला कि औफिस जाने से पूर्व उस ने 15-20 मिनट का समय ईमेल और फेसबुक के लिए रिजर्व कर रखा है ताकि थोड़ी देर अपना मनपसंद काम यानी मित्रों से हायहैलो कर औफिस तरोताजा हो कर पहुंचे और काम को बेहतर ढंग से कर सके.

कुल्लू घाटी की टीना को व्यास नदी के किनारे एक सुबह अपनी मित्र के यहां गुजारने का मौका मिला. हवा में हलकी ठंडक थी. चाय की ट्रे बड़े करीने के साथ सजी हुई कमलाबाई ले कर आई. साथ में एक ट्रे में, शीशा, कौटन बड्स, नेल कटर आदि भी थे. रीना ने हंसते हुए बाई से कहा, ‘‘सुबहसुबह चाय के साथ क्या ब्यूटी ट्रीटमैंट्स का भी प्रोग्राम है?’’

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