एक समय था जब ओलिंपिक खेल को यूरोपीय देश यूनान ने पूरी दुनिया से परिचित कराया था. लेकिन आज इसी ओलिंपिक खेल के कारण यूनानवासी कंगाल हो चुके हैं. बेरोजगारी और मंदी से यूनान बरबाद हो चुका है. वह अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ का तकरीबन 114 अरब रुपए का कर्ज नहीं चुका पाया है. आखिर ऐसा क्या हुआ यूनान के साथ? दरअसल, यूनान चाहता था कि वर्ष 1996 में ओलिंपिक के 100 वर्ष पूरे होने पर उसे मेजबानी मिल जाए और इस से देश को भारी आमदनी हो, पर ऐसा हुआ नहीं. 4 वर्ष बाद जब 2004 में यूनान को ओलिंपिक की मेजबानी मिली तो इस के आयोजन के लिए उसे भारी कर्ज लेना पड़ा. यूनान ने इस खेल के आयोजन के लिए तकरीबन 11 अरब डौलर खर्च कर डाले. इन खेलों में 201 देशों के 10 हजार से अधिक खिलाडि़यों ने 28 खेलों की 301 प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लिया. उस समय तो यूनानवासियों का खुशी का ठिकाना नहीं था पर धीरेधीरे देश की आर्थिक स्थिति खस्ता होने लगी. करोड़ोंअरबों की लागत से बना स्टेडियम सफेद हाथी साबित होने लगा  वर्ष 2004 खेलों की मेजबानी यूनान को वर्ष 1997 में ही मिल चुकी थी लेकिन खेल अधिकारी व प्रशासन 3 साल तक तो यों ही सोते रहे. इस के लिए अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक संघ के अधिकारियों ने उन्हें चेताया भी था कि अगर यही स्थिति रही तो यूनान को मेजबानी से हाथ धोना पड़ सकता है. बावजूद इस के, यूनान को यह बात समझ नहीं आई और पैसा पानी की तरह बहाया गया. ठीक वैसा ही जैसा कि दिल्ली में हुए कौमनवैल्थ गेम्स में बहाया गया था और भ्रष्ट राजनेता व नौकरशाह मालामाल हो गए. यूनान में भी ऐसा ही हुआ. ठेकेदारों और भ्रष्ट अधिकारियों की जेबें तो भर गईं लेकिन पूरा देश कंगाल हो गया. विडंबना देखिए कि जिस ओलिंपिक का यूनान ने पूरी दुनिया से परिचय कराया, आज उसी ओलिंपिक ने यूनान को दुनिया के सामने कंगाली की स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया है.

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