ब्रिटेन के एक अखबार ‘द संडे टाइम्स’ और जरमनी की ब्रौडकास्टर एआरडी ने दावा किया है कि 2001 से 2012 के बीच ओलिंपिक और अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में एकतिहाई एथलीट्स ने प्रतिबंधित दवाओं का सेवन किया था. शक के दायरे में रूस और केनिया के एथलीट्स सब से ऊपर हैं. पर कुछ कानूनी अड़चनों की वजह से अभी तक उन खिलाडि़यों का नाम उजागर नहीं किया गया है. इंटरनैशनल एसोसिएशन औफ एथलैटिक्स फैडरेशन यानी आईएएएफ के अधिकारियों को चिंता इस बात की है कि यह मामला ऐसे समय में आया है, जब अगले महीने बीजिंग में विश्व एथलैटिक्स चैंपियनशिप होनी है. डोपिंग की बीमारी पूरे विश्व में फैली हुई है. जमैका, जरमनी, अमेरिका समेत भारत भी इस की गिरफ्त में है. एथलैटिक्स का खेल शरीर की ताकत पर ज्यादा निर्भर करता है. ऐसे में शौर्टकट और मुकाबले में दूसरों को हराने के चक्कर में खिलाड़ी ऐसी दवाओं का सेवन करते हैं जिन से ज्यादा ऊर्जा का संचार हो. ऐसी दवाएं बीमार आदमी के लिए तो ठीक हो सकती हैं लेकिन खेल नियमों के अनुसार खिलाडि़यों के लिए प्रतिबंधित हैं.

भारत के ऐसे कई एथलीट हैं जो डोपिंग में पकड़े गए हैं. 1968 में मैक्सिको खेलों के ट्रायल में कृपाल सिंह दौड़ते समय गिर पड़ा था और उस के मुंह से झाग निकल पड़े थे. बाद में पता चला कि उस ने नशीले पदार्थों का सेवन किया था. दीपक चौधरी, नितिन कुमार, रोहित कुमार आदि ऐसे कई नाम हैं जिन पर डोपिंग के आरोप लग चुके हैं. भारतीय मुक्केबाज विजेंद्र सिंह पर भी इसी तरह के आरोप लग चुके हैं. वर्ल्ड एंटी डोपिंग संस्था यानी वाडा डोपिंग रोकने के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल करती है. यहां तक कि वाडा दवा कंपनियों के साथ इस की जांच के तरीके निकालने और कालाबाजारी पर कानूनी रोकथाम की भी कोशिश कर रही है, इस के बावजूद डोपिंग रुकने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं. यह तो पक्का है कि खेलों को डोपिंग से मुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि एकदूसरे को पछाड़ने, पैसा और यश कमाने के कारण इंसान गलत काम करने से नहीं चूकता है और वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तत्पर रहता है पर खिलाडि़यों को यह बात समझनी चाहिए कि ऐसी दवाओं का इस्तेमाल कर वे अपने भविष्य के साथ ही नहीं बल्कि अपने शरीर से भी खिलवाड़ कर रहे हैं.

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