नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में सब से ज्यादा बोलने वाले मंत्री अरुण जेटली को आम आदमी पार्टी ने बुरी तरह घेरा. दिल्ली के क्रिकेट स्टेडियम को ले कर रस्साकशी का जो दौर चला उस में अरुण जेटली चैनलों, अखबारों को इंटरव्यू देने में ऐसे लगे रहे जैसे अभिनेताअभिनेत्री अपनी फिल्मों के प्रमोशन के लिए इंटरव्यू देने में लगे रहते हैं.
मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो द्वारा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के दफ्तर में एक अफसर के केबिन में डाले गए छापे से शुरू हुआ था. सीबीआई चाहे जो कहे, एक मुख्यमंत्री के दफ्तर पर छापा मारा जाए तो सरकार व मुख्यमंत्री की छवि तो खराब होगी ही. शासन हो या व्यापार, सैकड़ों कागज ऐसे मिल जाएंगे जो पहली बार में गलत लगेंगे चाहे बाद में उन का औचित्य सिद्ध किया जा सके.
मायावती, मुलायम सिंह, जयललिता, शरद पवार जैसे नेता तो सीबीआई जांच से घबरा जाते हैं पर अरविंद केजरीवाल दूसरी मिट्टी के बने निकले. उन्होंने दिल्ली डिस्ट्रिक्ट क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे अरुण जेटली के अध्यक्षीय काल में बने स्टेडियम की मिट्टी की परतें उधेड़नी शुरू कर दीं. नतीजतन, नरेंद्र मोदी के इकलौते मंत्री, जिन के पास वकालत से बहुत अच्छी, शुद्ध आय वर्षों से चली आ रही थी, खुद कठघरे में खड़े नजर आए.
यह मामला आंधी की तरह रहा जो फिलहाल ठंडा पड़ गया है जैसा मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह के व्यापमं घोटाले के मामले में हुआ या जैसा ललित मोदी के राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे या विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के संबंधों को ले कर हुआ. बहरहाल, अरुण जेटली को सफाई देनी पड़ी और इस का अपरोक्ष लाभ कांगे्रस को मिला, फलत: नैशनल हैराल्ड का मामला फीका पड़ गया.