भारतीय टैनिस की सनसनी मानी जाने वाली और विंबलडन 2015 में वूमंस डबल्स चैंपियन हैदराबाद की 28 वर्षीया सानिया मिर्जा को ‘राजीव गांधी खेलरत्न’ अवार्ड और क्रिकेटर रोहित शर्मा के साथ 17 अन्य खिलाडि़यों को ‘अर्जुन अवार्ड’ से सम्मानित करना खिलाडि़यों के लिए कई माने में इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि इस से खिलाडि़यों का न सिर्फ हौसला बढ़ता है बल्कि आने वाले खिलाड़ी भी पूरे उत्साह व जोश से खेलते हैं. माना जा रहा था टिटू लुका (800 मीटर), देवेंद्र झांझरिया (पैरालिंपिक जैवलिन थ्रो), विकास गौड़ा (डिस्कस थ्रो), दीपिका पल्लीकल (स्क्वैश), सरदार सिंह (हौकी) और अभिषेक वर्मा (तीरंदाजी) भी इस दौड़ में थे पर खेल मंत्रालय ने सानिया मिर्जा को देश के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेलरत्न से सम्मानित करने की पुष्टि कर दी.

अवार्ड दे कर खिलाडि़यों को सम्मानित करना अच्छी बात है पर कई बार अवार्ड को ले कर विवाद हो चुके हैं. इस के पीछे की राजनीति भी कई बार सामने आ चुकी है. खेल मंत्रालय और खेल संघ के अधिकारी भलीभांति जानते हैं कि खेल पर कितना ध्यान दिया जा रहा है. उन्हें पता है कि आजकल खेल को दुधारू गाय बनाया जा रहा है क्योंकि बनाने वाले भी तो यही लोग हैं. इन्हें पैसों की भूख है, खेल की नहीं. कोई भी खेल अब सस्ता खेल नहीं रह गया है. गांव, कसबे या छोटे शहरों में ऐसी कई सानिया मिर्जा या फिर रोहित शर्मा मिल जाएंगे लेकिन वे पैसों की तंगी की वजह से आगे नहीं बढ़ पाते हैं. प्रशिक्षण लेने में लाखोंहजारों रुपए लगते हैं. एकआध खिलाड़ी अगर भागदौड़ कर यहांवहां से पैसा जुटा कर किसी तरह ट्रेनिंग में पारंगत हो भी जाए तो चयन समिति उसे नहीं चुनती. चयन समिति की नजरों में जो खिलाड़ी आ जाए या फिर किसी बड़े खिलाड़ी ने उस खिलाड़ी की सिफारिश कर दी तभी कुछ चांस बन पाता है. यह तो सिर्फ कहने की बात होती है कि खिलाडि़यों की परफौर्मेंस देखी जाती है. हां, ऐसा होता भी है लेकिन बहुत कम. कई खिलाड़ी ऐसे भी उभर आते हैं जो अपने दम पर चयन समिति को उन्हें चुनने के लिए मजबूर कर देते हैं. मुक्केबाज मनोज कुमार ने अपना हक लड़ कर लिया था 

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