सड़कों पर वाहनों की संख्या जिस गति से बढ़ रही है, सड़क पर जाम का संकट उतना ही अधिक हो रहा है. सरकार और वाहन निर्माता कंपनियां निरंतर अपने वाहनों की बिक्री के आंकड़े पेश कर रहे हैं लेकिन कोई यह बताने को राजी नहीं है कि जाम लगने की वजह से कितने लोगों को आर्थिक संकट से और कितने लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ रहा है. हर दिन जाम के कारण देर से दफ्तर नहीं पहुंचा जा सकता और न ही रोजरोज देर से आने की वजह बता कर कार्यालय में बौस के गुस्से से बचा जा सकता है. सड़क पर लगने वाले जाम से देश को ईंधन का भारी नुकसान हो रहा है. मुंबई, पुणे और कोलकाता दुनिया में जाम के कारण कुख्यात हो चुके हैं. दुनिया में सब से अधिक जाम वाले शहरों में भारत के ये 3 शहर शामिल हो गए हैं. उधर, दिल्ली की हालत भी पतली होती जा रही है. जाम के कारण दिल्ली के लोग पैसे और समय की मार से पीडि़त हो रहे हैं. किसी भी सड़क पर जाइए, जाम आप का पीछा नहीं छोड़ने वाला. इस महानगर की सड़कें समय की बरबादी, पैसे की बरबादी और मानसिक प्रताड़ना का प्रतीक बनती जा रही हैं.

एक अध्ययन के अनुसार, भारत में सालाना 60 हजार करोड़ रुपए का तेल जाम के कारण बरबाद हो रहा है. सड़कों पर जाम के दौरान फंसे वाहन हर माह 5 हजार करोड़ रुपए का तेल खड़ेखड़े पी रहे हैं. सरकार अब इस स्थिति से निबटने के लिए कदम उठा रही है. उस के लिए दिल्ली में ज्यादा से ज्यादा पार्किंग स्थल बनाए जा रहे हैं. नए फ्लाईओवर, सड़कें और सर्विस सड़कों का निर्माण किया जा रहा है. योजना पर सरकार का सिर्फ 34 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का प्रस्ताव है जबकि जानकार कहते हैं कि यदि सचमुच दिल्ली में जाम से निबटना है तो 1 लाख हजार करोड़ रुपए खर्च करने पड़ेंगे. हर सड़क पर दिल्ली में नियमित जाम लगता है. ऐसे में जाम से छुटकारा पाने के लिए सड़क पर आ रहे वाहनों की संख्या सीमित करनी पड़ेगी, पुराने वाहन हटाने होंगे और लोगों को सार्वजनिक वाहनों के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करना होगा लेकिन इस के लिए इस सेवा को सुधारना पड़ेगा.

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