अमेरिकी प्रशासन अकसर यह प्रचार करता रहता है कि भारत की निवेश नीति में खामियों की वजह से बहुराष्ट्रीय कंपनियों को वहां निवेश में भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है. उस के इस दुष्प्रचार के बावजूद बड़ीबड़ी अमेरिकी कंपनियां भारत में निवेश को प्राथमिकता दे रही हैं. भारत में निवेश कर के वे हमें उपकृत नहीं कर रहीं. उन कंपनियों का सीधा मकसद लाभ कमाना होता है और उन्हें जहां बाजार दिखेगा, कारोबार में लाभ की संभावना दिखेगी, वे किसी की परवा किए बिना वहां निवेश करेंगी.
इन कंपनियों का कहना है कि वे बिना अनुकूल परिस्थितियों के किसी बाजार में नहीं घुसती हैं. भारत में उन्हें पूरी तरह से अनुकूल माहौल मिलता है.
दरअसल, ओबामा सरकार को सिर्फ वही समझ आता है जो उस की नीतियों के अनुकूल होता है. इसी नीति के तहत अमेरिकी वाणिज्य उद्योग मंडल ने भारत से कहा है कि वह अपने कानून में बदलाव करे और निवेश करने वाली विदेशी कंपनियों को संरक्षण देने की अपनी नीति में सुधार लाए.
अमेरिका की धमकी का जवाब देते हुए वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने हाल ही में उसे स्पष्ट कर दिया है कि यदि अमेरिका को लगता है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन कर रहा है तो वह हमारी शिकायत विश्व व्यापार संगठन यानी डब्लूटीओ में जा कर करे. गिलीड, फोर्ड, आईवीएम जैसी नई बड़ी कंपनियां अमेरिका के रुख के खिलाफ खड़ी हो गई हैं और उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि बाजार के लिए बौद्धिक संपदा का संरक्षण आवश्यक है और भारत में कारोबार करते हुए उन्हें कहीं भी लगता नहीं कि भारतीय बाजार में उन के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है. इन कंपनियों ने भारत से यह जरूर कहा है कि वह निवेश की प्रक्रिया को कुछ और सरल बनाए. बहरहाल, यह अमेरिकी चाल है जिस का भारत ने सख्ती से जवाब दिया है.

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