भाजपा सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को रंगने की तैयारी में है. सरकार की योजना रंग लाई तो अर्द्धसरकारी क्षेत्र की कंपनियां ज्यादा समय तक सफेद हाथी बन कर नहीं रहेंगी. केंद्र की नई सरकार ने तय कर लिया है कि सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को लाभ में चलने वाली कंपनी बनाना है. यह विचार सही है. स्वाभाविक रूप से यह गंभीर मामला है कि निजी क्षेत्र की कंपनियां जिस कारोबार में मालामाल हो रही हैं, सरकारी क्षेत्र की कंपनियां उसी क्षेत्र में डांवांडोल स्थिति में हैं. गंभीर मंथन के बाद सरकार ने तय कर लिया है कि वह एमटीएनएल, बीएसएनएल, एनएचपीसीएल, टीएचडीसी, कोल इंडिया लिमिटेड जैसी ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों में निजी क्षेत्र के प्रोफैशनल को शीर्ष पदों पर नियुक्त कर के उन की कार्यकुशलता का फायदा इन सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को देगी.

ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने इस की प्रक्रिया शुरू कर दी है और कार्मिक विभाग की मुहर लगने के बाद इस के लिए विज्ञापन भी जारी कर दिए जाएंगे. सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है. अब तक इन कंपनियों के शीर्ष पदों पर आईएएस अधिकारियों को रख दिया जाता था. वह विषयविशेषज्ञ नहीं होता और कई बार वह कंपनी की बुनियादी स्थितियों से ही अनभिज्ञ होता था. फिर भी शीर्ष पद पर बिठा दिया जाता जिस का फायदा कंपनी में काम कर रहे अनुभवी लोग और दूसरी कंपनियों के जानकार अपने हित में उठाते और सरकारी क्षेत्र की मलाईदार कंपनी को कंगाल बना देते. यदि क्षेत्र के प्रोफैशनलों को निजी क्षेत्र से ला कर ऊंचे पदों पर बिठाया जाता है तो कंपनी को लाभ ही होगा. यदि निचले स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे निकम्मे लोगों को हटा कर भी निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को रखा जाता है तो सरकारी क्षेत्र की कंपनी को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है.

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