भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने स्टार्टअप कंपनियों में निवेश को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस क्षेत्र में एंजल निवेशकों के लिए नियमों में ढील दी है. इसके तहत नए व्यावसायिक विचारों को सहारा देने वाले ऐसे निवेशक अब 5 साल तक पुरानी इकाइयों में पूंजी लगा सकेंगे.

न्यूनतम निवेश की सीमा भी 50 लाख रुपये से घटा कर 25 लाख कर दी गई. स्टार्टअप क्षेत्र के ऐसे निवेशकों को अपनी निवेश योग्य निधि के एक चौथाई हिस्से को विदेशी उद्यमों में निवेश करने की छूट होगी. यह इस बारे में अन्य क्षेत्र के एंजल निवेशकों के लिए लागू नियम के ही अनुरूप है. सेबी ने एक योजना में एंजल निवेशकों की अधिकतम संख्या 49 से बढ़ाकर 200 कर दी है.

स्टार्टअप क्षेत्र में निवेश कोष के लिए तय न्यूनमत सीमा 50 से घटा कर 25 लाख कर दी है. इसके पीछे सोच यह है कि विचार के स्तर पर कुछ इकाइयों को ज्यादा धन की जरूरत नहीं होती. भारत में स्टार्टअप क्षेत्र के लिए वैकल्पिक निवेश कोष उद्योग के विकास और स्टार्टअप इकाइयों के लिए अनुकूल नियामकीय वातावारण उपलब्ध कराने के बारे में सिफारिश करने के लिए मार्च 2015 में इन्फोसिस टेक. के पूर्व प्रमुख एनआर नारायणमूर्ति की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति बनाई थी.

सेबी ने एफपीआई को असूचीबद्ध कॉर्पोरेट बांड में निवेश की अनुमति दी

सेबी ने पूंजी बाजार को व्यापक बनाने के मकसद से एफपीआई (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) को असूचीबद्ध कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों और बिना गारंटीशुदा ऋण पत्रों में निवेश की मंजूरी देने का फैसला किया है. इसमें 35,000 करोड़ रुपये की सीमा लगाई गई है. सेबी के निदेशक मंडल की बैठक में इस आशय का फैसला किया गया.  

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