स्वस्थ दांतों के प्रति लोगों की उदासीनता घटी है. लोग दंत स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सचेत हो रहे हैं. दूरदराज इलाकों में भी दांतों के प्रति लोगों में जागृति आ रही है. अप्रशिक्षित लोगों की दांतों की दुकानों पर स्वयं ताले लग रहे हैं. उन के ग्राहक अच्छे दंत चिकित्सकों को खोज रहे हैं. अच्छे चिकित्सकों से दांतों का निरीक्षण करवाना एक फैशन जैसा बन गया है. लोगों में इसी तरह का उत्साह टूथपेस्ट के प्रति भी बढ़ा है. टूथपेस्ट कंपनियां विज्ञापनों पर खूब पैसा खर्च कर रही हैं. बाजार में एक से बढ़ कर एक टूथपेस्ट विज्ञापनों के जरिए धूम मचाए हुए हैं.

सभी टूथपेस्ट कंपनियां अपने उत्पाद की गुणवत्ता की कहानी बेहद नाटकीय अंदाज से पेश कर के ग्राहकों को लुभाने में जुटी हैं. बाजार में प्रतिस्पर्धा है. असंख्य टूथपेस्ट हैं और सभी दांतों को चमकाने व मसूड़ों को मजबूत करने का दम भरते हैं. गुणवत्ता की परख किसी उपभोक्ता के लिए आसान नहीं होती, इसलिए कंपनियां बाजार में पैसा फूंक कर अपनेअपने दावे को प्रभावी बनाने में लगी हैं.

कोलगेट कंपनी तो पैप्सोडैंट के एक विज्ञापन के खिलाफ कोर्ट में भी गई और कहा कि उस के मजबूत दांत वाला विज्ञापन उस के दावे को प्रभावित कर रहा है. लेकिन दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका को ठुकरा दिया और कहा कि उन के मजबूत दांत वाला विज्ञापन प्रभावित नहीं हो रहा है. टूथपेस्ट कंपनियां किस तरह से बाजार में पैसा फेंक रही हैं इस का उदाहरण यही है कि जुलाई 2011-12 में टूथपेस्ट कंपनियों ने विज्ञापन पर 5,102 करोड़ रुपए लुटाए जबकि इस साल जुलाई तक यह आंकड़ा 5,795 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है.                                           

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