निजी क्षेत्र की प्रतिभाओं से मदद

सरकारी बैंकों में घपले की घटनाएं तेजी से उजागर हो रही हैं. शीर्ष अधिकारी गड़बड़ी करने के आरोप में जेल की हवा खा रहे हैं. बैंक जो ऋण दे रहा है, उस की उगाही उन के लिए कठिन हो रही है और उन का बड़ा पैसा डूब रहा है. बैंकों की गैर निष्पादित राशि में लगातार इजाफा हो रहा है. सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पास इसे रोकने का कोई उपाय नहीं है. यह प्रबंधन के स्तर पर कमजोरी का परिणाम है, इसलिए प्रबंधन में सुधार लाने की जरूरत है. बैंक प्रशासन ने इस स्तर पर सुधार के लिए मन बना लिया है. ऋण के प्रवाह को तेज करने तथा वसूली की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित बनाने के लिए पहल की जा रही है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा भी है कि बैंकों को और अधिक स्वायत्तता दिए जाने की जरूरत है. इस क्रम में सब से पहले उस एकाधिकार को समाप्त किया जा रहा है जिस में बैंक के कर्मचारी को ही शीर्ष पद तक पहुंचने का अधिकार है. इस क्रम में बैंक के अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक को निजी क्षेत्र के बैंकों से प्रतिभाओं को तोड़ कर लाने की योजना पर भी काम चल रहा है. निजी क्षेत्र में प्रतिभाएं हैं और यदि कारोबार को मजबूत व प्रतिस्पर्धी बनाना है तो इस तरह के कदम उठाने लाजिमी हैं. सरकारी क्षेत्र के बैंकों को बदले माहौल के अनुकूल अपने स्तर और क्षमता में सुधार लाने होंगे.

बैंक प्रशासन भी मानता है कि बैंकों की सेहत में सुधार लाने का यही सही वक्त है और इस काम को प्रतिभाओं की मदद से ही आसान बनाया जा सकता है. विशेषज्ञ और प्रतिभाएं बैंक के कर्मचारियों के घेरे से बाहर भी हैं. बदले दौर में सीमाओं में रहने की सारी परंपराएं टूट रही हैं. ठेके पर कर्मचारियों की भरती की जा रही है. अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले कर्मचारी अपना रास्ता तलाश रहे हैं और प्रतिभाओं को अवसर मिल रहा है. बैंकिंग व्यवस्था बाजार का अहम हिस्सा है और इसे बाजार के बदले माहौल के हिसाब से मजबूत बनाने की जरूरत है. यह काम बाजार की प्रतिभाओं को जोड़ कर ही पूरा किया जा सकता है.

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