बीमार आदमी इस उम्मीद से अस्पताल पहुंचता है कि वह स्वस्थ हो कर लौटेगा और फिर अपने कारोबार में जुट कर अपने घरपरिवार के भरणपोषण में जुट जाएगा. डाक्टर जो लिखता है और जिस तरह की जांच कराता है, मरीज सवाल किए बिना हाथ जोड़ कर उस का पालन करने के लिए विवश रहता है. डाक्टर और उस की दवा पर इतना विश्वास होता है कि मरीज उस के दिशानिर्देशों पर सख्ती से चलता है और अनुशासनात्मक ढंग से उस का पालन करता है. उसे मालूम नहीं होता कि जिस दवा से वह ठीक होने की उम्मीद पाल रहा है वह नकली है और संभव है कि इलाज कराने के दौरान इस से उस का स्वास्थ्य और खराब हो जाए. ऐसा इसलिए होता है कि बाजार में नकली दवाओं की भरमार है.

सरकार के पास इस पर नियंत्रण का कोई इलाज नहीं है. हाल ही में अमेरिका के फार्मास्युटिकल सिक्युरिटी इंस्टिट्यूट यानी पीएसआई ने एक सर्वेक्षण किया है जिस के अनुसार भारत नकली दवा के कारोबार में दुनिया में तीसरे स्थान पर है. पहले स्थान पर अमेरिका और उस के बाद चीन है. जबकि ब्रिटेन भारत के बाद चौथे स्थान पर है. वर्ष 2014 के इस सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिका में 319, चीन में 309, भारत में 239 तथा ब्रिटेन में 157 दवाएं नकली पाई गई हैं. भारत में 8.4 फीसदी दवा नकली बिक रही है अथवा उन में गुणवत्ता नहीं होती है. नकली दवाओं के कारण दुनिया में हर साल लगभग 10 लाख लोगों की मौत हो रही है. इन दवाओं के इस्तेमाल से यदि मरीज बच जाता है तो उसे अन्य कई तरह की परेशानियां होनी शुरू हो जाती हैं. सर्वेक्षण के अनुसार नकली दवाओं की दुनिया में लगभग 90 अरब डौलर का सालाना कारोबार है जो लगातार बढ़ रहा है. वर्ष 2013 में शीर्ष 5 नकली दवा के कारोबारी देशों में चीन, भारत, पाकिस्तान, जापान और अमेरिका शामिल थे. वर्ष 2014 के दौरान भारत में 2,35,000 डौलर की नकली दवाएं पकड़ी गई थीं. इस के अलावा इस अवधि में 39,300 डौलर की विटामिन, कैल्शियम आदि की नकली दवाएं पकड़ी गई थीं.

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