हमारे अर्थशास्त्री ‘जमीन’ पर चलें तो देश का कायापलट जल्द होगा. रुपया भले ही दिलों की धड़कन बढ़ा रहा है लेकिन मानसून की अच्छी बारिश ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने का काम किया है. आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि कई वर्षों के बाद मानसून खुशियां बिखेरता नजर आया है. उम्मीद की जा रही है कि अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय सुधार आएगा.

कृषि क्षेत्र के लिए इस बारिश को खुशहाली लाने वाली बारिश माना जा रहा है. कृषि पैदावार में अच्छी बढ़ोतरी की उम्मीद है. अच्छी खेती की वजह से कृषि ऋण के 30 फीसदी तक बढ़ने की आशा व्यक्त की जा रही है. अच्छी फसल से किसान की आय बढ़ेगी और देश को खाद्य सुरक्षा की जमीनी गारंटी मिल सकेगी. वहीं देश की आर्थिक विकास दर में कृषि क्षेत्र की भागीदारी बढ़ेगी.जानकार कहते हैं कि बढि़या बारिश के नतीजे में ग्रामीण क्षेत्रों में कारों की बिक्री 20 से 22 प्रतिशत तक बढ़ेगी और तिपहिया वाहनों की बिक्री का आंकड़ा 40 फीसदी तक बढ़ सकता है. टैलीविजन, फ्रिज आदि की जरूरत भी ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ रही है, इन की बिक्री में भी इजाफा हो सकता है.

दरअसल, खरीफ की फसल इस बार पिछले साल की तुलना में दोगुना हो सकती है क्योंकि इस बार 5 लाख हैक्टेयर भूमि पर जुताई हुई है. देश के सशक्तीकरण में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 58.2 फीसदी बताई जा रही है. कृषि क्षेत्र के प्रति लोगों का ध्यान घट रहा है क्योंकि बिचौलिए इस मेहनतकश वर्ग का शोषण कर के अपने कौलर सफेद बनाए रखते हैं. यदि सरकार कृषि पैदावार पर ध्यान दे तो देश का कायापलट हो सकता है. लेकिन मुश्किल यह है कि हमारे अर्थशास्त्री जमीन की ओर कम देखते हैं.

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