बड़े शहरों में लोग अकसर घर खरीदने की दौड़ में शामिल नजर आते रहे हैं. लेकिन पिछले वर्ष नवंबर में नोटबंदी के बाद से इस दौड़ पर मानो लगाम लग गई है. लोग घर या घर बनाने के लिए प्लौट खरीदने के बजाय पैसा बैंकों में जमा कर रहे हैं. इस से प्रौपर्टी के छोटेमोटे कारोबारी चुप बैठ गए हैं और उन के समक्ष रोटी का संकट खड़ा हो गया है. पहले प्रौपर्टी को खरीद और बेच कर मोटी कमाई करने और अपनेअपने खर्च बढ़ाने के आदी हो चुके ये प्रौपर्टी डीलर अब अपनी दुकानें बंद कर रहे हैं. बाजार में खरीदार ही नहीं हैं. बिल्डरों की हालत भी पतली हो चुकी है.

रियल एस्टेट क्षेत्र में डाटा और विश्लेषण तथा शोध करने वाली मशहूर कंपनी डाटा प्रोपइक्विटी ने हाल में समाप्त वित्तवर्ष की आखिरी तिमाही में घरों की बिक्री संबंधी एक डाटा पेश किया था जिस के अनुसार, पिछले वित्तवर्ष की तीसरी में घरों की बिक्री घटी है. कंपनी ने नोएडा, गुड़गांव, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, चेन्नई और पुणे में भवनों की बिक्री को ले कर रिपोर्ट दी थी जिस में कहा गया कि इन सभी शहरों में खरीदारों की संख्या में गिरावट आई है. बिल्डर नए मकान नहीं बना रहे हैं और जो मकान तैयार हैं, उन्हें वे पहले बेचना चाहते हैं.

इस बीच सरकार ने 2 लाख रुपए से अधिक की नकद लेनदेन पर भी रोक लगा दी है जिस का सीधा असर रियल एस्टेट के कारोबार पर पड़ा है. रियल एस्टेट के लिए सरकार ने एक नया कानून भी बनाया है जो बिल्डरों की मनमानी पर नकेल कसने वाला है. इस से इस कारोबार में कालाबाजारी पर रोक लगेगी और बिल्डरों की मनमानी रुकेगी.सरकार का यह कदम महानगरों में अपना घर होने की उम्मीद पाले लोगों के लिए राहत देने वाला है. पहले के हालात में शायद ही कोई यह कह सकता था कि प्रौपर्टी की खरीद में वह धांधली का शिकार नहीं हुआ.

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