सरकार के काम सामान्यतया तेजी से नहीं किए जाते लेकिन जहां वोट का खेल हो वहां सरकार की तत्परता देखने लायक होती है. इस साल के बजट में सरकार ने 2014 के आम चुनाव के मद्देनजर महिलाओं के लिए अलग से ‘महिला बैंक’ बनाने की घोषणा की और घोषणा के 9 माह के भीतर ही उसे क्रियान्वित भी कर दिया. नवंबर के मध्य में प्रधानमंत्री ने महिला बैंक का उद्घाटन किया और कुछ चुने हुए नगरों में इस बैंक ने काम करना शुरू कर दिया. वित्तमंत्री पी चिदंबरम की चुनावी वर्ष में महिलाओं के वोट बटोरने की नीयत से की गई यह अनूठी पहल कामयाब होती नजर आ रही है.

आवश्यक वस्तुओं के आसमान छू रहे दामों के कारण किचन के महंगे हुए बजट से चिढ़ी महिलाओं के चेहरे पर इस बैंक के खुलने से मुसकराहट उभरी है. जिन शहरों में भी इस बैंक की शाखाएं खुली हैं वहां बेहतर परिणाम देखने को मिल रहे हैं. कई राष्ट्रीयकृत बैंकों ने इस बैंक को चुनौती देने के लिए अलग से महिला शाखाएं खोलने पर विचार करना शुरू कर दिया है. उन की शाखाएं देश के प्रथम महिला बैंक की तरह सिर्फ महिला ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए काम करेंगी. इन शाखाओं पर कर्मचारी महिलाएं ही होंगी.

यह सरकार की अच्छी पहल है वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने महिलाओं की तरक्की को ध्यान में रख कर नहीं बल्कि महिलाओं को खुश कर के उन के वोट को बटोरने को रणनीति के तहत बजट में यह घोषणा की थी.

हाल ही में वित्तमंत्री ने कहा कि देश की 30 प्रतिशत से कम महिलाओं के पास बैंक खाते हैं. पहले उन्हें ज्ञान नहीं था कि महिलाओं की स्थिति क्या है. दरअसल, वे सब कुछ राजनीति के लिए करते हैं. कल को वे कहीं यह न कहें कि देश में अल्पसंख्यक बैंक, मुसलिम बैंक, दलित बैंक, पिछड़ा वर्ग बैंक आदि खुलने चाहिए. वर्ग विशेष को खुश कर के वोट हासिल करने की नीति देश का असंतुलित और कटुतापूर्ण विकास का ही मार्ग प्रशस्त करेगी.

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