लघु और मध्यम उद्योग यानी एसएमई को रोजगार का ऐसा साधन माना जाता है जिस के दायरे में बड़ी तादाद में लोगों को रोजगार के अवसर मिलते हैं. केंद्रीय वित्त मंत्रालय इस क्षेत्र की उपयोगिता को समझता है और इसी महत्त्व को देखते हुए उस ने बैंकों पर इस क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने पर जोर दिया है. इस के ठीक उलट, इस क्षेत्र पर पहले ही बैंकों का भारी ऋण डूबने के कगार पर है.
बैंकों के सामने सरकार के आदेश को मानने और इस उद्योग पर लगाए गए पैसे के डूबने की दुविधा है. इस के बावजूद बैंकों की योजना उस उद्योग को बढ़ावा देने की है. इस के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना की तुलना में 12वीं पंचवर्षीय योजना में इस उद्योग के लिए ऋण की मात्रा दोगुनी से अधिक कर 24 हजार करोड़ रुपए करने की है.
बैंक जानते हैं कि इस क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8 फीसदी योगदान है और इस भागीदारी को बढ़ाने के लिए इस उद्योग को बढ़ावा देने की जरूरत है. यह जरूरत तब ही ज्यादा प्रभावी साबित होगी जब बैंकों का पैसा वापस मिलेगा.
सरकारी बैंकों ने कर्ज वापसी का रास्ता तलाशने के लिए समितियां बना दी हैं. समितियां कह चुकी हैं कि इस क्षेत्र की उपलब्धि बहुत कम है लेकिन सभी के लिए रोजगार के अवसर इस उद्योग में हैं, इसलिए इसे चालू रखते हुए इस में और पैसा लगाने की जरूरत है. लेकिन पैसा लौटेगा नहीं तो बैंकों को एसएमई को ऋण देने पर फिर से विचार करना पड़ सकता है.
वित्त मंत्रालय के दबाव में बैंक अपना पैसा जोखिम में डाल भी देते हैं तो क्या यह देखने की जरूरत नहीं है कि कहीं सरकार की उदारता का कुछ लोग गलत फायदा तो नहीं उठा रहे? हो सकता है कि कुछ लोग एसएमई के नाम पर ऋण ले कर उस का दुरुपयोग कर रहे हों. इस बिंदु पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

 

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