हम लोग तकनीकी का बखूबी इस्तेमाल करते हैं. हम बाबूगीरी से परेशान हैं इसलिए मशीन से होने वाले काम को तवज्जुह देते हैं. भला हो तकनीकी विशेषज्ञों का जिन्होंने संचार क्रांति ला कर काम को आसान कर दिया है. हमें दलालों से बचाया और लंबी लाइन में खड़े होने से मुक्ति दी है. रेल टिकट के लिए अब धक्के खाने से बच गए हैं.

गांवदेहात में जाइए तो वहां भी एटीएम से पैसा निकालने का प्रचलन बढ़ा है. एक आंकड़े के अनुसार, पिछले वर्ष अप्रैल से इस वर्ष मई तक एटीएम मशीन से पैसे निकालने की दर 37 प्रतिशत बढ़ी है. नैशनल पेमैंट कौर्पोरेशन औफ इंडिया ने कहा है कि इस अवधि में एटीएम से भुगतान 41 हजार 360 करोड़ रुपए से बढ़ कर 56 हजार 525 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है. लोगों में एटीएम के इस्तेमाल के प्रति और बढ़ते रुझान को देखते हुए बैंकों ने भी इस मशीन के विस्तार पर खास फोकस किया है और वे जगहजगह एटीएम मशीनों को स्थापित कर रहे हैं.

बैंकों में मानो एटीएम मशीन लगाने की होड़ मची है. पिछले वर्ष जनवरी में 69 हजार एटीएम मशीनें थीं जिन की संख्या बढ़ कर अब 1 लाख 22 हजार के करीब पहुंच चुकी है. रिजर्व बैंक औफ इंडिया ने तो अब ‘ह्वाइट लैवल’ मशीन लगाने की अनुमति भी दे दी है. ह्वाइट लैवल मशीन बैंक की नहीं बल्कि निजी कंपनी की होती है. टाटा कम्युनिकेशंस सौल्यूशन और मुथूट फाइनैंस जैसी बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में कूद रही हैं. इस का मतलब यह हुआ कि अब और तेजी से एटीएम मशीनें लगेंगी लेकिन इस में भी धोखा है.

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