निर्देशक मोजेज सिंह की फिल्म ‘‘जुबान’’, ‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ की ओपनिंग फिल्म का दर्जा हासिल करने के साथ साथ पुरस्कार भी बटोर चुकी है. मगर बाक्स आफिस पर यह फिल्म कमाई कर सकेगी, इसमें शंका है. इस फिल्म में एक युवक की स्वत: की खोज के साथ साथ बहुत ही नाटकीय पारिवारीक कथा भी है.

फिल्म की कहानी का केंद्र पंजाब के गुरूदासपुर निवासी हरप्रीत उर्फ दिलशेर (विक्की कौषल) हैं. जब दिलशेर बच्चा था, तब वह गुरूद्वारा में अपने पिता को गाते हुए सुनकर  खुद भी गाता था. पर एक दिन कुछ शारीरिक कमी के चलते उसके पिता आत्महत्या कर लेते हैं और फिर उसकी जिंदगी बदल जाती है. बचपन में ही उसकी मुलाकात गुरूचरन सिकंद (मनीष चैधरी) से हुई थी, जिसने उसे सिखाया था कि जो इंसान खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकता, अपनी लड़ाई नहीं लड़ सकता, उसके लिए कोई दूसरा क्यों लडे़गा? बड़ा होने पर एक बहुत बड़ा इंसान बनने की चाहत लेकर दिलशेर अपने मुंहबोले मामा एच पी मेहता के पास दिल्ली पहुंचता है. दिलशेर को पता है कि दिल्ली में गुरूचरन उर्फ लायन आफ गुरूदासपुर बहुत बडे़ भवन निर्माता और होटलों के मालिक हैं. वह उनके साथ काम करना चाहता है. पर उसका मामा बताता है कि गुरूचरन से उनकी दोस्ती टूट चुकी है. अब गुरूचरन किसी की इज्जत नहीं करता है. पर दिलशेर ठान लेता है कि वह गुरूचरन तक पहुंचेगा.

इसलिए वह एक सिक्यूरिटी एजेंसी में नौकरी करता है. फिर एक दिन  वह गुरूचरन के बेटे सूर्या सिकंद (राघव चानना) के खिलाफ जाकर मजदूर नेता की मदद से मजदूरों की हड़ताल खत्म करवाकर गुरूचरन के करीब पहुंच जाता है. गुरूचरन को एक पेन दिखाते हुए कहता है कि यह पेन उन्होने उसे दिया था और वह उनकी दी हुई शिक्षा पर चल रहा है. गुरूचरन, दिलशेर को अपने यहां नौकरी दे देता है. वास्तव में सूर्या, गुरूचरन का अपना बेटा नही है. सूर्या तो गुरूचरन की पत्नी मंदिरा (मेघना मलिक) और एच पी मेहता का बेटा है. इसी वजह से वह सूर्या को अपना बेटा नहीं मान सका. पर पत्नी की वजह से मजबूर होते हुए कई निर्णय लेता रहा है. लेकिन अब गुरूचरन, दिलशेर के कंधें पर बंदूक रखकर सूर्या को ना सिर्फ जलाना चाहता है, बल्कि उसे हर पल परेशान करते रहना चाहता है. सूर्या और उसकी मां को दिलशेर पसंद नही है. पर गुरूचरन हर तरह से दिलशेर को आगे बढ़ाता है. हर महत्वपूर्ण काम उसी से करवाता है. अपनी स्टेट में उसे रहने की जगह दे रखी है.

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