कहते हैं न कि किसी के दिल तक पहुंचने का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है, ‘लंच बौक्स’ में रखे स्वादिष्ठ खाने ने भी दर्शकों के दिलों को जीत लिया है. यह सीधी, सच्ची और सरल सी फिल्म है.

फिल्म में गिनेचुने 4 पात्र हैं. निर्देशक रितेश बत्रा ने इन चारों किरदारों को कहीं भटकने नहीं दिया है. ये किरदार दर्शकों को बांधे रखते हैं. 2 प्रमुख एडल्ट किरदारों के बीच रोमांस लंच बौक्स के जरिए ही फलताफूलता है.

फिल्म की कहानी है मुंबई के एक दफ्तर में नौकरी करने वाले विधुर साजन (इरफान खान) और एक बच्चे की मां इला (निमरत कौर) की.  इला के पति ने उस में रुचि लेना कम कर दिया है. इला को लगता है कि उस के पति के संबंध किसी और औरत से बन गए हैं. वह रोजाना अपने पति के लिए लंच बौक्स में खाना रख कर डब्बा वाले के जरिए उस के दफ्तर भेजती है. पर वह डब्बा उस के पति के पास न पहुंच कर साजन (इरफान खान) के पास पहुंचने लगता है और साजन का एक रेस्तरां से आने वाला डब्बा उस के पति के पास पहुंचता है. पहले डब्बा भरा ही वापस आ जाता था पर अब वापस आने पर खाली लंच बौक्स आता है. साजन खाली डब्बे में खाने की तारीफ कर एक पत्र रख देता है. इला को पता चल जाता है कि डब्बा किसी और के पास जा रहा है.

यहीं से इला की जिंदगी में बदलाव आता है. पत्रों के जरिए दोनों में रोमांस पैदा होता है. कुछ दिन तक पत्रों का सिलसिला चलता रहता है. दोनों एक रेस्तरां में मिलने का फैसला करते हैं. पर वहां पहुंच कर साजन को अपनी बढ़ती उम्र और इला की कम उम्र का एहसास होता है तो वह उस से बिना मिले ही वापस लौट जाता है. अंत में दोनों मिलते हैं या नहीं यह स्पष्ट नहीं किया गया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...