याद कीजिए 1980 में आई हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘खूबसूरत’ को, जिस में एक साधारण से घर की लड़की रेखा ने घरवालों को हंसना और खुल कर जीना सिखाया था. हृषिकेश मुखर्जी की यह फिल्म सच में बड़ी ही खूबसूरत थी. फिल्म एक फैमिली ड्रामा थी और रेखा के चुलबुलेपन ने दर्शकों को खुश कर दिया था. शशांक घोष की यह ‘खूबसूरत’ हृषिकेश मुखर्जी की ‘खूबसूरत’ से प्रेरित है. कुछ लोग इसे उस फिल्म का रीमेक भी मानते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. इस फिल्म की नायिका सोनम कपूर की तुलना रेखा से नहीं की जा सकती. रेखा का चुलबुलापन नैचुरल लगा था, जबकि सोनम कपूर का चुलबुलापन आर्टिफिशियल लगता है.

फिल्म की कहानी परियों जैसी है. कहानी दर्शकों को परीलोक में तो नहीं ले जाती, हां, राजमहलों में जरूर ले जाती है. राजस्थान के संभलगढ़ के राजा शेखर राठौड़ (आमिर रजा हुसैन) पिछले कई सालों से व्हीलचेयर पर हैं. महल की देखरेख उन की पत्नी निर्मला राठौड़ (रत्ना पाठक) करती हैं. उन का एक बेटा विक्रम राठौड़ (फवाद खान) है. राजा शेखर राठौड़ के लिए एक फिजियोथेरैपिस्ट डा. मिली चक्रवर्ती (सोनम कपूर) को महल में बुलाया जाता है. मिली चक्रवर्ती पंजाबी परिवार से है. दिल्ली में उस का परिवार रहता है. मंजु (किरण खेर) उस की मां है.

महल में हर काम कायदेकानून से होता है. लेकिन मिली कायदेकानूनों की परवा न कर राजा शेखर राठौड़ के इलाज में जुट जाती है. कुछ ही दिनों में मिली के खुशमिजाज स्वभाव और खुश कर देने वाली बातों का जादू महल के परिवार के लोगों पर चलने लगता है, खासतौर से युवराज विक्रम राठौड़ की तो सोच ही बदल जाती है. वह मिली को चाहने लगता है. उधर मिली की मां मंजु चाहती है कि मिली की शादी युवराज से हो जाए. धीरेधीरे शेखर राठौड़ के स्वास्थ्य में सुधार होने लगता है. वह खुद मिली से काफी खुश है. इधर विक्रम भी मिली के प्रति काफी आकर्षित हो चुका होता है. अंतत: विक्रम मिली के परिवार वालों से मिली का हाथ मांगता है और दोनों परिवारों की रजामंदी हो जाती है.

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