गैंगवार वाली इस फिल्म में कुछ नया ढूंढ़ने की कोशिश न करें. फिल्म 80 के दशक में उत्तर प्रदेश में आतंक फैलाने वाले महेंद्र फौजी और सतबीर गुर्जर पर आधारित है. फिल्म में कहींकहीं गालियां भी हैं.

फिल्म की कहानी एकदम मुंबइया स्टाइल की है. बाहुबलि राशिद खान (रवि किशन) और चेयरमैन (परेश रावल) के बीच गांव के एक प्लौट को ले कर टकराव है. सतबीर उर्फ मास्टरजी (विवेक ओबराय) गांव में टीचर है. चेयरमैन की बेटी सुमन (चार्मी कौर) मन ही मन उसे चाहती है. फौजी (अरशद वारसी) नामी गुंडा है. उस का अपना गिरोह है, जो फिरौती के लिए वसूली करता है. सतबीर के यह सिद्ध करने पर कि प्लौट चेयरमैन का ही है, पंचायत चेयरमैन के पक्ष में अपना फैसला सुनाती है. राशिद फौजी को मोटी रकम दे कर अपने साथ मिला लेता है. फिर एक षड्यंत्र के तहत वह फौजी के घर पर हमला कराता है. फौजी सतबीर पर शक करता है. वह सतबीर के भाई कर्मवीर (चंद्रचूड़ सिंह) की हत्या कर देता है. यहीं से सतबीर और फौजी के बीच गैंगवार शुरू होती है, जिस की चपेट में पूरा गाजियाबाद जिला आ जाता है. चेयरमैन को फौजी मार डालता है. फौजी की बेटी सुमन सतबीर से शादी कर लेती है. बाद में फौजी सुमन को भी मार डालता है. इस गैंगवार को खत्म करने के लिए इंस्पैक्टर प्रीतम सिंह (संजय दत्त) को बुलाया जाता है जो अपनी शतरंजी चाल से राशिद और फौजी को मार डालता है और सतबीर को कानून के हवाले करता है.

फिल्म की गति तेज है. निर्देशक ने गैंगवार को खुल कर दिखाया है. अरशद वारसी ने बहुत अच्छा काम किया है. संजय दत्त पर सलमान खान की दबंगई का असर साफ नजर आया. दोनों हीरोइनें सिर्फ शोपीस बनी रहीं. फिल्म का गीतसंगीत पक्ष अच्छा है. लेकिन निर्देशक ने जल्दबाजी में गंदे, उजाड़ से गाजियाबाद में हरेभरे पहाड़, बड़े तालाब और झीलें तक दिखा डाली हैं. बौलीवुड में ऐसा ही होता है.

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