जेब में फूटी कौड़ी नहीं और बातें लाखोंकरोड़ों की. ख्वाहिशें बड़ीबड़ी, सपने ऊंचे, हमेशा  खुश रहने वाले, बेहद जुगाड़ू होते हैं फुकरे. अगर हम अपने आसपास निगाह दौड़ाएं तो हमें कहीं न कहीं ऐसे फुकरे जरूर नजर आ जाएंगे. कालेजों में तो फुकरों की पूरी जमात ही देखने को मिल जाएगी. ऐसे फुकरे अपने दोस्तों को उल्लू बना कर अपनी जरूरतें पूरी करते हैं.

निर्माता फरहान अख्तर की यह फिल्म उस की पिछली फिल्मों ‘दिल चाहता है’ और ‘जिंदगी मिलेगी न दोबारा’ की तरह ही 4 दोस्तों की दोस्ती पर है. स्कूल- कालेज में पढ़ने वाले ये चारों दोस्त लंगोटिया यार हैं. फुकरा नंबर वन है चूचा (वरुण शर्मा) और फुकरा नंबर 2 है हन्नी (पुलकित सम्राट). दोनों 3-4 साल फेल हो चुके हैं. सारा दिन वे लड़कियों के आगेपीछे घूमते रहते हैं. तीसरा फुकरा लाली (मनजोत सिंह) हलवाई का बेटा है. वह अकसर अपनी गर्लफ्रैंड को बाइक पर कालेज छोड़ता है. चौथा फुकरा है जफर (अली फजल). वह कालेज में पढ़ता है और गायक बनना चाहता है.

इस फुकरापंती की जड़ हैं हन्नी और चूचा. चूचा और हन्नी को कालेज में ऐडमिशन के लिए पैसे चाहिए. वे कालेज का परचा लीक करा कर पैसों का जुगाड़ करना चाहते हैं. कालेज का चौकीदार उन्हें एक दबंग लेडी भोली पंजाबन (रिचा चड्ढा) के पास पैसों के इंतजाम के लिए ले जाता है. भोली उन्हें एक डील के तहत 4 लाख 470 हजार रुपए दे देती है. इस पैसे को वे लौटरी में लगाते हैं. पैसा डूब जाता है. भोली पंजाबन चूचा, हन्नी और लाली पर पैसे लौटाने का दबाव बनाती है. लाली के पिता की दुकान के कागज भी उस ने कब्जे में कर रखे हैं. वह लाली और हन्नी को एक रेव पार्टी में ड्रग्स की गोलियां बेचने की पेशकश करती है. दोनों उस पार्टी में पहुंचते हैं और पुलिस रेड में फंस जाते हैं परंतु बच जाते हैं. अंत में वे पुलिस को सचाई बता देते हैं. पुलिस उन दोनों को छोड़ देती है और भोली पंजाबन को गिरफ्तार कर लेती है.

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