बौलीवुड भेड़चाल से कभी नहीं उभर सकता. इसका ताजातरीन उदाहरण है-‘‘क्या कूल हैं हम’’ सीरीज की तीसरी फिल्म ‘‘क्या कूल हैं हम-3’’. दो साल पहले एडल्ट कॉमेडी फिल्म ‘‘ग्रैंड मस्ती’’ ने बाक्स आफिस पर सौ करोड़ क्या कमा लिए, हर फिल्मकार को लगने लगा  है कि अब वह एडल्ट कॉमेडी के नाम पर कुछ भी परोसकर दर्शकों को मूर्ख बना सकते है और अपनी तिजोरी को भर सकते हैं.

‘‘ग्रैंड मस्ती’’ के लेखक मिलाप झवेरी ने ही फिल्म ‘‘क्या कूल हैं हम 3’’ के संवाद लिखते हुए फूहड़ द्विअर्थी संवादों की पराकाष्ठा पार कर डाली है. उपर से मिलाप झवेरी दावा करते हैं कि अब दर्शक इसी तरह की फिल्में देखना चाहते हैं. इसी के चलते अगले हफ्ते बतौर लेखक व निर्देशक अपनी फिल्म ‘‘मस्तीजादे’’ भी लेकर आने वाले हैं. 

निर्देषक उमेश घाड़गे ने पार्न कामेडी जानर के नाम पर ‘‘क्या कूल हैं हम 3’’ में पार्न इंडस्ट्री का बहुत भद्दा और गलत स्वरुप पेश किया है. उपर से फिल्म के अंत में ‘कपड़े उतारने मात्र से किसी के संस्कार गलत नहीं हो जाते’’ बात कह कर अपनी भद पिटवाली. फिल्म के अंत में उन्होने अपने किरदारो से यह वाक्य कहलवा दिया, मगर वह  इस बात को अपनी फिल्म के कथानक में नही पिरो सके. पूरी फिल्म कहानी विहीन है. फिल्म के कुछ दृश्य ऐसे हैं, जिन्हे देखकर ‘‘क्या कूल हैं हम 3’’ सीरीज की ही पिछली फिल्मों के सीन याद आ जाते हैं.

फिल्म की नायिकाओं को पूरी फिल्म में उन्होने सिर्फ बिकनी में ही पेश किया. निर्देशक  ने पूरी फिल्म में सिर्फ अश्लीलता परोसने का ही काम किया है. फिल्म में कहीं भी बेवजह गाने आ जाते हैं. कहानी न होने की वजह से बीच बीच ऐसे जोक्स या फिल्मों पर स्पूफ भर दिए गए हैं, जो दर्शकों का मनोरंजन करने की बजाय उन्हे बोर ही करते हैं. शोले या चेन्नई एक्सप्रेस जैसी फिल्मों के स्पूफ दृश्य तो अश्लीलता की सारी हदें पार कर गए हैं.

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