जब कोई हर्ष मामर जैसा बाल कलाकार ‘आई एम कलाम’ और ‘जलपरी’ जैसी फिल्मों में काम करता है तो उसे जरूर वाहवाही मिलती है. वही बाल कलाकार जब हाथ में पिस्तौल लहराते हुए किसी का मर्डर करता दिखता है तो यह सोचने पर विवश हो जाना पड़ता है कि क्या यही हमारे देश का भविष्य है? क्या यह भारत का ‘कलाम’ बनने लायक है?

‘चारफुटिया छोकरे’ बाल शोषण और बच्चियों के ट्रैफिकिंग पर बनी फिल्म है. फिल्म का विषय गंभीर है परंतु इस का ट्रीटमैंट गंभीर नहीं है.  मसालों में लिपटी यह फिल्म जायके को बिगाड़ देती है. इस फिल्म की कहानी में बहुत सारी बातें हैं. गांव में किसान के कर्जा न चुका पाने पर उस के बैल खोल कर ले जाने का जिक्र है तो किसान के बेटे द्वारा साहूकार के आदमी का मर्डर भी है. गांव में एक दबंग की दबंगई है तो किशोरियों को जबरन उठा कर उन से देह शोषण कराने की कहानी भी है. इस के अलावा एक एनजीओ द्वारा गांव में स्कूल बनवाने की बात भी है, साथ ही दबंगों द्वारा नायिका की अस्मत लूटने की कोशिश भी है.

दरअसल यह फिल्म कहना तो बहुत कुछ चाहती है परंतु ढंग से अपनी बात कह नहीं पाती. फिल्म की कहानी एक गांव से शुरू होती है. गांव के लठैत एक किसान द्वारा कर्ज न चुका पाने पर उस की हत्या कर देते हैं. किसान का बेटा अवधेश (हर्ष मायर) 4 फुट लंबा है. वह अपने बाप के कातिल को मार डालता है और अपने 2 दोस्तों गोरख (शंकर मंडल) और हरि (आदित्य जीतू) के साथ भाग जाता है. तीनों को गांव का एक दबंग नेता लखन (जाकिर हुसैन) संरक्षण देता है. तीनों चारफुटिए छोकरे के नाम से मशहूर हो जाते हैं.

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