आजकल नोटबंदी के दौर में उपजी नकदी की कमी से निबटने के लिए गांवदेहात सामान के बदले सामान लेनेदेने के पुराने दौर में वापस चले गए हैं. इस से किसानों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि उन की उपज औनेपौने दामों पर बिक रही है. वैसे, विनिमय एक सिद्धांत है. जिस में किसी चीज को खरीदने के लिए पैसे की जगह पर दूसरी चीज ही देनी होती है. गांव में चीनी, नमक, मसाले और जरूरत की दूसरी चीजों को खरीदने के लिए किसान धान को देता है, तो दुकानदार धान को नकद पैसे की तरह से लेता है. इस को ऐसे समझा जा सकता?है कि जैसे चीनी की कीमत 40 रुपए किलोग्राम है और धान की कीमत 10 रुपए किलोग्राम तो 1 किलोग्राम चीनी की खरीद के लिए किसान को 4 किलोग्राम धान देना पड़ रहा?है.

परेशानी की बात यह है कि दुकानदार धान की कीमत बाजार में चल रही कीमत से कम लगाते हैं. ऐसे में दुकानदार को दोहरा मुनाफा हो रहा है. वह चीनी पर फायदा तो कमा ही रहा है, कम कीमत पर धान ले कर भी उस पर अलग से मुनाफा पा रहा?है. किसानों का जो धान बाजार में 12 से 15 रुपए प्रति किलोग्राम बिक रहा है, वह दुकानदार 10 से 12 रुपए में ही खरीद रहा है. किसान बाजार में धान ले कर 1-2 महीने के बाद पैसा देने की बात कर रहा है. ऐसे में किसान अपनी जरूरतों के लिए धान को दे कर दूसरे सामान ले रहा है.

हो रहा नुकसान

गांव के लोग अपनी छोटीछोटी जरूरतों के लिए वस्तु विनिमय का सहारा तो पहले भी लेते थे, पर अब खाद, बीज और दूसरी खरीदारी के लिए भी ‘वस्तु विनिमय’ का सहारा लेने लगे?हैं. गांव के आसपास लगने वाले बाजारों को देखें तो वहां पर लगे आनाज के ढेर देख कर पता चलता है कि लोग किस तरह से नकदी न होने से परेशान हैं और अपने धान को औनेपौने दाम पर बेच रहे हैं. लखनऊ के इटौंजा गांव के रहने वाले दिवाकर कहते हैं, ‘धान को बेच कर पैसा नकद नहीं मिल रहा. ऐसे में हम इसे बेच कर जरूरत का दूसरा सामान ले रहे हैं.’ इसी गांव के रहने वाले सुरेश कहते हैं, ‘धान बेच कर हम अभी काम चला ले रहे हैं. धान के बिकने के बाद से हम आगे कैसे गुजरबसर करेंगे, पता नहीं. अब हमें शहरों में काम नहीं मिल रहा. अगर ऐसे ही हालात आगे चलते रहे और मजदूरी नहीं मिली, तो गुजरबसर कर पाना मुमकिन नहीं होगा.’

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