नई किस्मों की बदौलत सब्जी उत्पादन के मामले में भारत चीन के बाद अब दूसरे नंबर पर आ गया है. फिलहाल देश के 95 लाख हेक्टेयर रकबे में सब्जियों की पैदावार करीब 17 करोड़ टन सालाना हो रही है. अभी यह और बढ़ सकती है, लेकिन तोड़ाई, लदाई, पैकिंग, मंडी की खामियों, भंडारण व प्रोसेसिंग वगैरह की कमी से करीब एक तिहाई सब्जियां खराब हो जाती हैं. सरकारें पैदावार बढ़ाने पर जोर देती हैं, लेकिन उपज ज्यादा होते ही मंडी में भाव गिरने से किसानों की हालत खराब हो जाती है. खासकर सब्जियों की खेती करने वालों को दोधारी तलवार पर चलना पड़ता है, क्योंकि ज्यादातर सब्जियों को अनाजों की तरह गोदामों में नहीं भर सकते. लिहाजा नुकसान किसानों का और फायदा बिचौलियों, आढ़तियों व सब्जी उत्पाद बनाने वाली कंपनियों का होता है. इसलिए सब्जियों की खेती व कारोबार में बदलाव जरूरी है, ताकि किसानों को नुकसान न हो.

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क्या करें किसान

ज्यादातर किसान आज भी सब्जियां उगाने व मंडी में ले जा कर बेच देने की पुरानी घिसीपिटी लीक पर ही चल रहे हैं. लिहाजा कड़ी मेहनत के बावजूद उन्हें मुनाफा मिलना तो दूर, उपज की वाजिब कीमत भी नहीं मिलती है. लिहाजा जरूरी है कि किसान, नई तकनीक अपनाएं और कम जमीन में जल्दी, ज्यादा व बेहतर क्वालिटी की उपज देने वाली सब्जियों की नई किस्में ज्यादा से ज्यादा लगाएं.

इस के लिए जानकारी बढ़ाना, नए कदम उठाना व कृषि वैज्ञानिकों से तालमेल बनाना जरूरी है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने सब्जियों की 485 उम्दा किस्में निकाली हैं. वाराणसी, उत्तर प्रदेश में चल रहे भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान व भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान, हैसरघट्टा, बेंगलूरू के माहिर लगातार सब्जियों की खेती से जुडे़ तमाम पहलुओं पर खोजबीन कर रहे हैं. उन से सब्जियों की बोआई से कटाई तक बेहतर ढंग से खेती करने व नई किस्मों की जानकारी हासिल की जा सकती है.

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