पहले दलहन, तिलहन व गन्ना आदि को ही किसानों की नकदी फसल माना जाता था, क्योंकि इन्हें बेच कर किसान रुपए प्राप्त करते थे, लेकिन अब सूअरपालन और मछलीपालन भी किसानों के लिए नकदी के जरीए बन गए हैं. सूअरपालन और मछलीपालन असम के किसानों के लिए काफी फायदेमंद हैं. वक्त के साथसाथ अब मछलीपालन और सूअरपालन के तरीके में काफी बदलाव आ चुका है. सूअरपालन और मछलीपालन अलगअलग न कर के एकसाथ करना काफी फायदेमंद होता है. एक ही जगह पर दोनों का पालन आसानी से हो जाता है.

सूअरपालन करने में काफी पानी की जरूरत पड़ती है. जिस तालाब में मछलीपालन किया जाता?है, उसी तालाब में अलग से पानी की जरूरत नहीं पड़ती है. असम में मछली और सूअर के कारोबारियों के लिए यह तरीका काफी फायदेमंद साबित हो रहा है. मछलीपालन के लिए तालाब के पानी को हमेशा साफ रखा जाता है. उसी पानी का इस्तेमाल सूअरपालन में करने से सूअरों को बीमारी का खतरा कम रहता है. देश के कई अन्य राज्यों में भी अब सूअरपालन और मछलीपालन एकसाथ हो रहा है. ऐसा करने से इस कारोबार में खूब फायदा मिलता है, क्योंकि इस तरीके से कम उत्पादन लागत में मछली और सूअर के मांस दोनों का ही भरपूर उत्पादन होता है.

असम में मांस और मछली दोनों की काफी मांग है. इसीलिए वहां के ढेर सारे बेरोजगार युवकयुवतियां इस समय सूअरपालन व मछलीपालन के काम में लगे हुए हैं और मोटी रकम कमा रहे?हैं. मछलीपालन व सूअरपालन के काम को सरल बनाने और किसानों को इस बारे में नईनई जानकारियां मुहैया कराने के लिए ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ की पूर्वोत्तर शाखा ने प्रदेश में एक योजना भी चला रखी है. इस के अलावा ‘राष्ट्रीय सूअर अनुसंधान संस्थान’ की ओर से भी किसानों को इस बारे में जानकारियां मुहैया कराई जा रही हैं. ये संस्थान मछलीपालन व सूअरपालन में प्रदेश के किसानों की मदद भी कर रहे?हैं, इस से किसानों को काफी फायदा पहुंच रहा है. गौरतलब है कि ‘राष्ट्रीय सूअर अनुसंधान संस्थान’ के निदेशक इस व्यवसाय को आगे बढ़ाने में काफी जोरशोर से लगे हुए हैं. उल्लेखनीय है कि प्रदेश का एकमात्र ‘पालन महाविद्यालय’ नगांव जिले के रोहा में मौजूद है. इस महाविद्यालय के अधिकारी इस क्षेत्र में अपना अहम योगदान देते रहते हैं. ऐसे में मछलीपालन और सूअरपालन का काम छोटे किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रहा है.

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