मशरूम मृत कार्बनिक पदार्थों पर उगने वाला एक कवक होता है. इसे खुंब, छतरी व कुकुरमुत्ता के नामों से भी जाना जाता है. इस की खासीयत यह है कि दूसरे कृषि उत्पादों की तरह इस के उत्पादन के लिए लंबेचौड़े खेतों का होना जरूरी नहीं है. इस का उत्पादन बंद कमरे में थोड़ी सी जगह में भी आसानी से किया जा सकता है. यही वजह है कि मौजूदा समय में मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में पुरुषों के साथसाथ महिलाओं को भी रुचि लेते देखा जा सकता है. व्यावसायिक स्तर पर उगाई जाने वाली खुंबियों में एगेरिकस बाइस्पोरस (यूरोपियन टैंपरेट या व्हाइट बटन मशरूम), वालवेरियल्ला (पेडो स्ट्री या जाइनाज मशरूम), प्ल्यूरोटस स्पीसीज (आयस्टर या ढिंगरी मशरूम), लेंटाइनस इडोडिस (थाईटेक) और फलैम्यूलाइंना बेल्यूटाइप्स (एनोकाइटेक) खास हैं. इन में से भारत में पहले 3 मशरूमों की खेती की जाती है, क्योंकि इन के उत्पादन की तकनीक यहां विकसित की जा चुकी है.

मशरूम की खासीयत

मशरूम की खासीयत यह है कि यह एक अच्छा पौष्टिक आहार है. इसे सब्जी के रूप में बहुत चाव से खाया जाता है. इस में प्रोटीन, खनिज, लवण, विटामिन व एमीनो एसिड वगैरह पौष्टिक तत्त्व पाए जाते हैं. वसा व स्टार्च की मात्रा कम होने के कारण यह दिल के रोगियों व मधुमेह जैसी बीमारियों से पीडि़तों के लिए बेहतरीन आहार है. इस में फोलिक एसिड व लौह तत्त्व भी पाए जाते हैं, जो रक्त में लाल कण बनाने में मददगार हैं.

शिक्षणप्रशिक्षण

मशरूम उत्पादन को रोजगार के रूप में अपनाने की इच्छा रखने वालों के लिए देशभर के तमाम कृषि विश्वविद्यालयों व कृषि अनुसंधान केंद्रों में साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक कोर्स संचालित किए जा रहे हैं. इन पाठयक्रमों का मकसद उत्पादकों को मशरूम उत्पादन की तकनीक व बीजों की अच्छी नस्ल से परिचित कराना है. इन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में दखिले के लिए उम्र व पढ़ाई संबंधी कोई जरूरी शर्त नहीं है. फिर भी अगर दाखिला लेने वाला 8वीं या 10वीं तक पढ़ालिखा हो, तो वह तमाम तकनीकी पहलुओं को आसानी से समझ सकेगा.

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