अपने देश में फल उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है. नीबू का सब से ज्यादा उत्पादन भारत में होता?है. इस के अलावा नारंगी, माल्टा, मौसमी, चकोतरे, किन्नू व संतरे आदि रसदार खट्टेमीठे फलों का भी खूब उत्पादन होता है. पूरी दुनिया में नीबू वर्गीय फलों के उत्पादन में अमेरिका व ब्राजील सब से आगे हैं. भारत के 9 लाख, 89 हजार हेक्टेयर रकबे में हर साल करीब 96 लाख 39 हजार टन नीबू वर्गीय फलों की पैदावार होती है, लेकिन उस से भरपूर मुनाफा कारोबारी ही कमाते?हैं.

यह सच है कि फल उगाने वालों को उपज की वाजिब कीमत नहीं मिलती. इस का एक बड़ा कारण यह है कि खेती में बढ़त के बाद भी ज्यादातर किसान आज भी तालीम, हुनर व जानकारी से दूर हैं. वे फलों की तोड़ाई के बाद की तकनीक से वाकिफ नहीं?हैं. इसीलिए अपने देश में कुल फल उपज के बहुत कम हिस्से की प्रोसेसिंग होती?है, जबकि अमीर देशों में उगाओ, प्रोसेस करो व अमीर बनो पर जोर दिया जाता है. इस के अलावा हमारे देश में पेड़ लगाने से ले कर फलों की तोड़ाई तक में आज?भी पुराने तौरतरीके इस्तेमाल होते हैं. इस से फलों की ग्रेडिंग, पैकिंग, ढुलाई, उतराई, भंडारण व रखरखाव आदि में समय, पैसा व मेहनत ज्यादा लगती है. कमियों की वजह से उगाने से खाने तक की चेन में काफी फल सड़ कर खराब हो जाते?हैं. इसलिए पैसे का बहुत नुकसान होता है व गंदगी बढ़ती है.

तकनीक से उठाएं फायदा

किसान तकनीक सीख कर यदि इन फलों की प्रोसेसिंग इकाइयां लगा लें व बागों के पास ही जूस आदि पैक करने लगें तो नुकसान को घटा कर खेती से?ज्यादा कमा सकते?हैं. तकनीकी जानकारी देने के लिए किसान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने लुधियाना, पंजाब में एक रिसर्च स्टेशन चला रखा?है. इस का नाम?है कटाई उपरांत तकनीक का केंद्रीय अनुसंधान संस्थान. इस में फलों व सब्जियों की प्रोसेसिंग, नुकसान घटाने व कीमत बढ़ाने का सैक्शन है. इस के अलावा अबोहर, पंजाब में इस का एक फल सेंटर अलग है. खानेपीने की चीजें बनाने की तकनीक मुहैया कराने के लिए वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद, सीएसआईआर का एक रिसर्च सेंटर मैसूर में चल रहा है. इस का नाम?है केंद्रीय खाद्य प्रोद्यौगिकी अनुसंधान संस्थान (सीएफटीआरआई). फलों का जूस निकालने की नई, सही व पूरी तकनीकी जानकारी यहां से भी ली जा सकती?है.

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