भारत में दुधारू पशुओं की संख्या में खासा इजाफा हुआ है. 19वीं पशुगणना 2012 के अनुसार देश में दुधारू पशुओं की संख्या 6.52 फीसदी बढ़ गई है. दूध उत्पादक देशों की फेहरिस्त में भारत का पहला स्थान है, मगर फिर भी प्रति पशु दुग्ध उत्पादकता में विकसित देशों से हम बहुत पीछे हैं. इस का मुख्य कारण पशुओं को हरा चारा न मिल पाना है. जायद के मौसम में हरे चारे की खासतौर पर कमी होती है. ऐसे में जायद में हरे चारे (ज्वार) की वैज्ञानिक ढंग से खेती कर के अच्छाखासा लाभ कमाया जा सकता है.

ज्वार को देश में अलगअलग नामों से जानते हैं. इसे उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय भाषा में कर्बी, मराठी में ज्वारी, कन्नड़ में जोर और तेलुगू में जोन्ना कहते हैं. महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान व गुजरात जैसे सूबों में इस की खूब खेती की जाती है. उत्तरी भारत में इस की खेती खरीफ और रबी दोनों मौसमों में की जाती है. खास बात यह है कि इसे कम बारिश वाले इलाकों में भी उगाया जा सकता है. चारे के अलावा इसे अन्न और जैव उर्जा के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. इस से साइलेज भी तैयार किया जाता है. इस की खास किस्म से स्टार्च व दानों से अल्कोहल भी हासिल किया जाता है. यही कारण है कि खाद्यान्न फसलों में कुल बोए जाने वाले रकबे में इस का तीसरा स्थान है.

मिट्टी : ज्वार की खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट और हलकी व औसत काली मिट्टी जिस का पीएच मान सामान्य हो बेहतर होती है. अगर अधिक अम्लीय या अधिक क्षारीय मिट्टी हो तो ऐसे स्थानों पर इस की खेती करना सही नहीं होता.

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