वाकई विदेशी चीजों की चमक में देशी चीजों का वजूद गुम सा हो गया है. ऐसा ही कुछ हाल भारत की देशी गायों का भी है. वैसे हकीकत तो यह है कि हिंदुस्तान की देशी गायें लाजवाब होती हैं. आखिर क्याक्या खूबियां पाई जाती हैं, भारत की देशी गायों में? आइए जानते है.

आमतौर पर माना जाता है कि भैंस के मुकाबले गाय और वह भी यदि देशी हो तो दूध कम देती है. हमारे समाज में गाय के नाम पर राजनीति, गौपूजा के नाम पर पाखंड, गोहत्या के नाम पर होहल्ला व लड़ाईझगड़े तो खूब होते हैं, लेकिन कोई यह नहीं देखता कि देशी गायों को सड़कों पर खुला छोड़ दिया जाता है और वे अपना पेट भरने के लिए प्लास्टिक, कूड़ाकचरा, कील व कांच आदि खाती फिरती हैं. ठीक से देखभाल न होने की वजह से देशी गायें दूध कम व बच्चे कमजोर देती हैं. वे अकसर बीमार रहती हैं और बेवक्त मर जाती हैं. यदि उम्दा नस्ल की देशी गाय सही तरीके से पालें, पौष्टिक चारा, खली, मिनरल मिक्सचर व दवाएं आदि समय से दें तो उन से ज्यादा दूध लिया जा सकता है.

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भारत सरकार के कृषि मंत्री खुद मानते हैं कि हमारे देश में देशी नस्ल की गायों को बचाने व बढ़ाने के लिए अब तक खास ध्यान नहीं दिया गया. लिहाजा देशी गायें अपने ही देश में लाचार हो गई हैं. अंधी होड़ में फंसे ज्यादातर पशुपालक नहीं देखते कि रोज 25-30 लीटर दूध देने वाली विदेशी गायें भारत में रह कर 10 लीटर दूध पर ही अटकी रहती हैं. जर्सी गायें देशी के मुकाबले जल्दी दूध देना बंद कर देती हैं. उन के लिए ज्यादा चारा व पानी चाहिए होता है. इसलिए देशी गायों के मुकाबले जर्सी नस्ल की गायों के खानपान पर खर्च ज्यादा होता है. नतीजतन विदेशी गायों के रखरखाव व उन के दूध की लागत ज्यादा आती है और पशुपालकों को डेरी के काम में कमाई कम होती है.

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