दशहरी आम के साथ लखनऊ का बहुत पुराना रिश्ता है. लखनऊ में अनेक किस्म के ऐसे आम हैं, जिन का जोड़ पूरी दुनिया में नहीं है. आम की बागबानी में नए और युवा लोग सामने आ रहे हैं. ऐसे किसानों से लखनऊ के आमों को नई पहचान मिल रही है. ऐसे पढ़ेलिखे बागबान आम की नई मार्केटिंग कर रहे हैं, जिस से लोगों को यह पता चल सका है कि लखनऊ में केवल दशहरी आम ही नहीं होता. यहां हुस्नआरा, श्रेष्ठा, अरुणिमा, अंबिका, सेंसेशन, सफेदा, चौसा और टामी एडकिन जैसे आम भी होते हैं.

ऐसे ही प्रगतिशील किसानों में एक नाम है सुरेशचंद्र शुक्ला का. लखनऊ के माल ब्लाक में स्थित नरौना गांव के रहने वाले सुरेश चंद्र शुक्ला ने बीएससी वनस्पति विभाग से किया. इस के बाद वे अपने गांव की जमीन पर लगे आमों के बाग को संवारने में जुट गए और नए सिरे से आमों का बाग तैयार किया. उन्होंने आम के साथसाथ दूसरे फलों और जड़ीबूटियों पर भी काम करना शुरू किया. कुछ सालों के अंदर ही सुरेश चंद्र शुक्ला का नाम लखनऊ के सब से बड़े बागबानों में शुमार हो गया. आज वे आम को नई पहचान देने का काम कर रहे हैं. 42 एकड़ जमीन पर आम की 271 किस्में उन के यहां लगी हैं. उन के साथ 5-7 दूसरे परिवारों का पालनपोषण भी हो रहा है. उद्यान रत्न सहित दूसरे दर्जनों अवार्ड जीत चुके सुरेश चंद्र शुक्ला को देख कर तमाम किसान आम की बागबानी करने लगे हैं.

आम की बागबानी पर सुरेश चंद्र शुक्ला कहते हैं, ‘आम अपनेआप में अनोखी किस्म का पेड़ होता है. एक ही आम का पेड़ कई किस्म के आम दे सकता है. ऐसे दूसरे पेड़ कम दिखते हैं. लखनऊ की जमीन की मिट्टी की खासीयत के कारण यहां के आम का स्वाद अनोखा होता है. आम का फल छोटा हो या बड़ा, देशी हो या हाईब्रिड, सभी को इस्तेमाल किया जा सकता है. मगर बिजली और दूसरी परेशानियों के चलते लखनऊ में आम को सही तरह से रखा नहीं जा सकता, इसलिए बागबानों को ज्यादा मुनाफा नहीं मिलता है.’

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