अमरूद ऐसा फल है जो देश के ज्यादातर हिस्सों में पाया जाता है. देश में उगाए जाने वाले फलों में क्षेत्रफल और उत्पादन के लिहाज से अमरूद का चौथा स्थान है. उत्तराखंड से ले कर कन्याकुमारी तक इस की बागबानी की जाती है. गुणों की भरमार वाले इस फल की तुलना सेब से की जाती है. अमरूद की बागबानी न केवल आसानी से हो जाती है, बल्कि इस के जरीए अच्छा मुनाफा भी कमाया जा सकता है. अमरूद का उत्पादन देश में सब से ज्यादा उत्तर प्रदेश, गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश में होता है. अमरूद की बागबानी सभी तरह की जमीन पर की जा सकती है. वैसे गरम और सूखी जलवायु वाले इलाकों में गहरी बलुई दोमट मिट्टी इस के लिए ज्यादा अच्छी मानी जाती है.

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में रेलवे स्टेशन के नजदीक स्थित ऐतिहासिक खुशरूबाग में बना ‘औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र’ अमरूद की न केवल पौध तैयार करता है, बल्कि वहां इच्छुक लोगों को अमरूद की बागबानी का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. केंद्र में मौजूद अमरूद की किस्मों की बात करें, तो वहां के इलाहाबाद सफेदा और सरदार अमरूद खासतौर पर मशहूर हैं. वहां अमरूद की एक और उन्नत किस्म ललित को भी तैयार किया गया है. यह गुलाबी और केसरिया रंग लिए होता है. इस की पैदावार दूसरे अमरूदों के मुकाबले 24 फीसदी ज्यादा होती है. गुलाबी आभा, मुलायम बीज व अधिक मिठास वाले अमरूदों की पैदावार हर कोई वैज्ञानिक तरीके अपना कर कर सकता है.

पौधारोपण

अमरूद का पेड़ 2 साल बाद ही फल देना शुरू कर देता है. यदि शुरुआत में ही पेड़ की देखरेख अच्छी तरह से हो जाए तो 30-40 सालों तक अच्छा उत्पादन मिल सकता है. देश में अमरूद के पौधे ज्यादातर बीजों के द्वारा तैयार किए जाते हैं, लेकिन माना जाता है कि इस से पेड़ों में भिन्नता आ जाती है.  इसलिए अब वानस्पतिक विधि द्वारा पौधे तैयार किए जाने पर जोर दिया जा रहा है. कलमी अमरूद का पौधा पौधशाला से 20 से 25 रुपए प्रति पौधे की दर से मिल जाता है. जुलाई, अगस्त व सितंबर महीने पौधा रोपण के लिए मुनासिब माने जाते हैं. सिंचित इलाकों में पौधारोपण फरवरी व मार्च के महीनों में भी किया जा सकता है. अमरूद के पौधों को 5×5 मीटर या 6×6 मीटर की दूरी पर लगाया जाना ज्यादा लाभकारी होता है. अमरूद के छोटे पेड़ों की सिंचाई अच्छी होनी चाहिए. जिस से कि जहां जड़ें हों वहां की मिट्टी को नम रखा जा सके. पेड़ बड़े होने के बाद 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.

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