महंगे मेवों में काजू की खास जगह है. मेघालय पूर्वोत्तर का इकलौता सूबा?है, जहां काजू का भरपूर उत्पादन होता?है. यही वजह है कि मेघालय को काजूबादाम का तालाब भी कहा जाता है. मेघालय सूबे का गारो पहाड़ इलाका इस का मुख्य केंद्र है. यहां पैदा किए गए काजू की मांग देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में है. मेघालय के गारो पहाड़ के रांगरा, महेद्रगंज, बाछमारा, महिरा खोला, शिववारी, गेल खोला, भालू वेतासींग, जिकजाक, गारोवाछा और डूबा वगैरह स्थानों में बड़ी मात्रा में काजू का उत्पादन किया जाता है.

काजू के बीज को रोपने के बाद जो पौधा निकलता है, वह बड़ा हो कर आम के पेड़ जैसा हो जाता है. बीज लगाने के 4 या 5 साल बाद मईजून महीनों में फूल लगने शुरू हो जाते हैं और नवंबरदिसंबर महीनों में काजू पेड़ से तोड़ने लायक हो जाते हैं.

1 पेड़ से तकरीबन 2 सौ से 3 सौ किलोग्राम तक काजू निकाले जाते हैं. गौरतलब है कि मौसम के हिसाब से काजू का रंग भी बदलता रहता?है. बरसात के मौसम में भीग जाने से काजू का रंग काला हो जाता है और खिली धूप में इस का रंग सफेद रहता है. मेघालय के गारो पहाड़ इलाके के लोग पेड़ से काजू तोड़ कर 2 या 3 दिनों तक धूप में सुखाने के बाद बोरी में भर कर साप्ताहिक बाजार में ले कर जाते?हैं और व्यापारियों के हाथों कम कीमत में बेच दिया करते हैं. कम कीमत पर काजू खरीदने वाले व्यापारी इसे?ऊंची कीमतों पर मिलमालिकों के हाथों बेच देते हैं. इस प्रकार विश्व बाजार में गारो पहाड़ के काजू की मांग रहते हुए भी गारो पहाड़ के काजू उत्पादकों को खास लाभ नहीं मिलता?है.

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