गंगा नदी से गायब होती जा रही डाल्फिनों और देसी मछलियों को बचाने के लिए अब बिहार सरकार की नींद टूटी है. पर्यावरण विज्ञानी और कृषि वैज्ञानिक पिछले कई सालों से सरकार पर दबाव बना रहे थे कि गंगा नदी को बचाने के लिए उस में परही डाल्फिन और देसी मछलियों को बचाना जरूरी है. राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित डाल्फिन की गिनती का काम केंद्र सरकार के नेशनल गंगा मिशन के तहत शुरू होना है. गिनती का काम करने वाले वन और पर्यावरण विभाग का अनुमान है कि भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र और उस की सहायक नदियों में पाई जाने वाली डाल्फिनों की आधी से ज्यादा संख्या बिहार में है. फिलहाल बिहार की नदियों में डाल्फिनों की संख्या का कोई ठोस आंकड़ा मौजूद नहीं है, जिस से डाल्फिनों को बचाने और बढ़ाने की योजना को ठीक तरीके से अमली जामा नहीं पहनाया जा सका है.

डाल्फिन मैन के नाम से मशहूर पटना विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आरके सिन्हा की किताब ‘द गैंगेटिक डाल्फिन’ में बिहार में गंगा नदी में डाल्फिनों की संख्या 1214 बताई गई है. वेटनरी डाक्टर सुरेंद्र नाथ ने बताया कि बिहार में उत्तर प्रदेश की सीमा से ले कर पश्चिम बंगाल की सीमा तक गंगा में डाल्फिनों की गिनती करने काम शुरू किया जाना है. गंगा की सहायक नदियों समेत सोन, महानंदा, गंडक, कोसी व कमला नदियों में गिनती का काम किया जाएगा. उन्होंने बताया कि सोन नदी में सब से ज्यादा डाल्फिनों के होने की उम्मीद है. गिनती करने के लिए ट्रेंड लोगों को जीपीएस से लैस बोट के साथ लगाया जाएगा. डाल्फिन मछलियां हर 2 मिनट पर सांस लेने के लिए पानी से बाहर आती हैं, उसी दौरान गिनती का काम किया जाएगा.

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