झारखंड के पथरीले इलाकों के बीच मछली उत्पादकों की मेहनत को देख कर सरकार यह दावा कर रही है कि मछली उत्पादन के मामले में झारखंड जल्द ही अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा. कभी मछली उत्पादन के मामले में फिसड्डी माने जाने वाले राज्य ने मछली उत्पादन में जोरदार छलांग लगाई है. साल 2004-05 में सूबे में 22 हजार मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ था, जो आज बढ़ कर 71 हजार मीट्रिक टन हो गया है. राज्य के मछलीपालकों का कहना है कि मछलीपालन को बढ़ावा देने से एक ओर जहां ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा, वहीं मछली उत्पादन के मामले में राज्य आत्मनिर्भर भी हो जाएगा. रांची के पास नामकुम इलाके के मछलीपालक सुखदेव महतो ने बताया कि राज्य में तालाबों की कमी को देखते हुए वैज्ञानिक तरीके से वैसे तालाब बनाने की जरूरत है, जिन में पूरे साल पानी रह सके. इस से मछली उत्पादन में ज्यादा तेजी आ सकेगी.

मछली उत्पादन से होने वाले फायदे को इस से आसानी से समझा जा सकता है कि 10 पैसे के 1 मछली बीज से 7-8 महीने बाद प्रति मछली 60 से 70 रुपए की कमाई हो जाती है. मछली उत्पादकों को सुविधाएं मिलें तो मछली उत्पादन के क्षेत्र में झारखंड कामयाबी की बुलंदियां छू सकता है. मछली उत्पादन के मामले में बंजर माने जाने वाले झारखंड में मछली उत्पादकों का हौसला बढ़ाने को ले कर सरकार की भी नींद खुली है. पिछले साल रिकार्डतोड़ मछली उत्पादन करने वाले किसानों को सरकार ने सम्मानित कर के उन का हौसला बढ़ाया. पाकुड़ जिले के सोमनाथ हलधर ने 200 क्विंटल मछली उत्पादन के साथसाथ 50 लाख मछली बीज का भी उत्पादन किया, जिस के लिए उन्हें पहला पुरस्कार मिला. गुमला जिले शिव प्रसाद साहू ने 150 क्विंटल मछली और 50 लाख मछली बीज का उत्पादन कर के दूसरा पुरस्कार हासिल किया. इस के अलावा साहू 70 गायों की डेरी चला कर खुद को और सूबे को माली रूप से मजबूत करने में लगे हुए हैं. चतरा जिले के प्रहलाद चौधरी ने 100 क्विंटल मछली उत्पादन कर के तीसरे पुरस्कार पर कब्जा जमाया. इन के साथ सरायकेला के राधाकृष्ण और बोकारो के गुहीराम घीवरने को 1-1 करोड़ और कोडरमा के सकलदेव सिंह को 50 लाख मछली बीज का उत्पादन करने के लिए सम्मानित किया गया. सरकार की ओर से मदद और सम्मान मिलने के बाद झारखंड में मछलीपालन की तरक्की तेज हुई है.

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