भारत में अभी भी दोतिहाई जनसंख्या अपने रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर है. खाद्य सुरक्षा और कृषि उत्पाद निर्यात जैसी तमाम योजनाएं किसानों के बल पर ही चलती हैं. इस के बावजूद किसानों की हालत साल दर साल और खराब होती जा रही है. किसानों की हालत इस हद तक खराब हो चुकी है, कि वे अब खुदकुशी करने पर मजबूर हो रहे हैं. ये हमारे देश की नाकामयाबी ही है. मौजूदा हालात में नाकामयाबी पर रोने के बजाय अगर भरपूर कोशिश की जाए, तो किसानों की हालत बेहतर हो सकती है. यह कोशिश सफलता को ध्यान में रख कर वैज्ञानिक तरीके से की जानी चाहिए. धानगेहूं फसल तकनीक 1960 के दशक की हरित क्रांति के समय की सफलतम कृषि तकनीक थी, जो अब धीरेधीरे अपनी चमक खो रही है. इस तकनीक से पैदावार तो काफी हुई, लेकिन उर्वरकों और रासायनिक दवाओं के बेतहाशा इस्तेमाल ने इस की रफ्तार धीमी कर दी है. जहां पर धानगेहूं तकनीक सफल है, वहां इसे और भी उन्नत बनाया जा सकता है. इस के अलावा खेती की और भी उन्नत तकनीकें हैं, जिन्हें किसानों को अपनाना चाहिए. खेती की ऐसी ही कुछ तकनीकें इस प्रकार हैं:

फसल विविधीकरण

लगातार एक ही किस्म की फसलें उगाने व एक ही तरह के साधनों का प्रयोग करने से न केवल फसलों की पैदावार में कमी आती है, बल्कि उत्पाद की क्वालिटी व खेत की उर्वरता में भी गिरावट आती है. लिहाजा खेतों में मुख्य फसल के साथ कोई दूसरी फसल भी लगानी चाहिए जैसे गेहूंचावल वगैरह के साथ दलहनी फसलें लगाई जा सकती हैं. इस के अलावा पशुपालन, मछलीपालन या मधुमक्खीपालन को भी अपनाया जा सकता है. अगर किसी साल मुख्य फसल खराब भी हो जाए, तो दूसरे साधन किसानों की आमदनी का जरीया बन सकते हैं. कई फसलों के फसलचक्र में धान्य, दलहनी, तिलहनी व चारे वाली फसलें लेनी चाहिए.

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