अनिमा की गाड़ी जब भी ट्रैफिक सिग्नल पर रुकती, उस का बेटा कुश वहां पर बिकते खिलौनों को खरीदने की जिद करने लगता. जब तक सिग्नल पर गाड़ी खड़ी रहती, उतनी देर खिलौने बेचने वालों का हुजूम गाड़ी के आसपास चक्कर काटता रहता. रंगबिरंगे खिलौनों को देख कुश का रोनाचिल्लाना बढ़ने लगता और मन मार कर अनिमा को उस के लिए 2-4 खिलौने खरीदने पड़ते. अनिमा बताती हैं कि उस का बच्चा पिछले 4 महीने से काफी बीमार और कमजोर होने लगा था. डाक्टर कई तरह की जांच के बाद इन्फैक्शन और एलर्जी बता कर दवा लिख देते. दवा खाने के कुछ दिनों तक तो कुश की तबीयत ठीक रहती पर फिर वह बीमार पड़ जाता. बाद में डाक्टरों ने बताया कि सड़कों और फुटपाथों पर बिकने वाले सस्ते व चाइनीज खिलौने कुश की बीमारी की बड़ी वजह हैं. खिलौनों से बच्चों को काफी लगाव और जुड़ाव होता है. यही वजह है कि खिलौनों की कई कंपनियां बाजार में हैं और उन में ऐसे खिलौने बनाने की होड़ मची रहती है जो बच्चों को ज्यादा से ज्यादा लुभा सकें. आएदिन कंपनियां नए और लुभावने खिलौने बाजार में उतारती रही हैं. खिलौनों को खरीदने से पहले पेरैंट्स को इस बात का ध्यान रखना जरूरी है कि कौन सा खिलौना बच्चे के लिए बढि़या है और कौन सा खराब है. खिलौनों को बच्चों की उम्र के हिसाब से खरीदना बेहतर होता है और साथ ही, उस की क्वालिटी का भी खास ध्यान रखने की जरूरत है. पेरैंट्स कई बार अति उत्साह में ऐसे खिलौने खरीद लाते हैं जिन्हें देख कर बच्चे खुश होने के बजाय डर जाते हैं.

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