जैसे हमारे विचार होते हैं, कुछ हद तक हमारा तन और मन भी वैसी ही प्रतिक्रिया देता है. हमारे मन में यदि यह बात बैठ गई कि ठंड मुझे बिलकुल बरदाश्त नहीं होती तो तन भी वैसी ही प्रतिक्रिया करनी शुरू कर देगा. मेरी बड़ी बहन न्यूजर्सी में रहती हैं. अक्तूबर के महीने में शाम के समय उन के घर की खिड़की थोड़ी सी खुली रह गई तो उन की पीठ बिलकुल अकड़ गई.

मेरी बड़ी बहन हमारे यहां इलाज करवाने आती थीं तो मैं पूछती थी कि आप को क्या हो गया? शिद्दत के साथ महसूस करने के कारण वे अपना जो रोग बताती थीं, वही रोग मुझे लग जाता था. फिर मैं ने पूछना ही बंद कर दिया. यह बात हर व्यक्ति पर लागू नहीं होती है, पर कुछ हद तक सही भी है. पहले मुझे कार आदि में थोड़ी दूर सफर करने पर भी मोशन सिकनैस की वजह से अकसर उलटी हो जाया करती थी. जब से मैं ने कल्पना चावला के बारे में पढ़ा और मन में कुछ नहीं सोचा तो उलटी आनी बंद हो गई.

मन में यदि क्रोध भरा है, तो इस का असर कमर पर, हाथों व पैरों पर तथा मस्तिष्क आदि पर पड़ सकता है. शांतमन से सोचें कि क्रोध आने के क्या कारण हैं? फिर शांतमन से उन को दूर करने की सोचें. यदि संभव हो, जिस बात पर क्रोध आ रहा है उसे हंस कर टालने की सोचें, या जिस व्यक्ति पर क्रोध आ रहा हो उसे क्षमा कर दें, ऐसा करने से आप कई परेशानियों से बच जाएंगे.

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