पेरेंट्स के लिए  बच्चे जितने मर्जी बड़े हो जाएं, बच्चे ही रहते हैं. लेकिन अगर परवरिश  की बात की जाए तो माता पिता को विकास के हर दौर में उनके साथ अलग अलग तरह से व्यवहार करना चाहिए. जब भी हम विकास के दौर की बात करते हैं तो बचपन, किशोरवस्था, युवावस्था व प्रौढ़ावस्था की बात  करते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि बचपन और टीन एज के बीच एक महत्वपूर्ण अवस्था होती है जिसे प्री टीन एज कहा जाता है.

यह वह पड़ाव होता है जब वे बचपन से टीन एज  की ओर बढ़ रहे होते हैं. अगर उम्र की बात की जाए तो 9 से 12 वर्ष के बीच के समय को प्री टीन एज कहा जाता है. इस उम्र से पहले तक हर पेरेंट्स को लगता है कितने अच्छे थे वे दिन जब बच्चे हमारी हर बात आसानी से मान लेते थे जहाँ बैठने को कहा  बैठ गए, जो खाने को दिया, खा लिया, जब सुलाया, सो गए.

लेकिन अब न जाने उन्हें क्या हो गया है वे हमारी कोई बात सुनते ही नहीं, हर बात पर बहस करते हैं, कुछ भी कहो तो हजारों सवाल पूछते हैं इसलिए हमने तो उन्हें कुछ कहना ही छोड़ दिया है. कई बार तो इन प्री टीन बच्चो के बदलते व्यवहार को ले कर पति पत्नी में भी महाभारत तक हो जाती है. दोनों एक दुसरे पर इल्जाम लगाते देखे जाते हैं “तुमने ही इसे सर पर चढाया था अब तुम ही भुगतो इसे”.

प्री टीन एज बच्चे के विकास का अत्यंत महत्वपूर्ण  दौर होता है जहाँ उनमें अनेक तरह के बदलाव आते है. अधिकांश पेरेंट्स बच्चों के इस बदले व्यवहार को कम्युनिकेशन गैप या जनरेशन गैप का नाम देते हैं लेकिन वे नहीं जानते कि उनकी बच्चों की परवरिश को लेकर बने पैरामीटर्स ही गलत हैं वे नहीं समझते कि हर बच्चा दुसरे से बिलकुल अलग है.

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