शीना 22 साल की उम्र में विधवा हो गई है. उस की सहेली सरोज ने उस का बहुत साथ दिया है. इधर कुछ दिनों से सरोज को यह विश्वासघात जैसा लगता है जब शीना की पड़ोसिन ने उसे बताया कि उस के पति अकसर शाम को शीना के पास आते हैं. सरोज के तनबदन में आग लग गई पर उस ने धैर्य रखा क्योंकि शीना से मिलते रहने के कारण वह यह जान रही थी कि अभी तक वह दुख से उबरी नहीं है. उस ने पति से पूछा तो वह बोला, ‘‘हां, जाता हूं. उस बेचारी का और कौन है.’’
इस पर दोनों में खूब झगड़ा हुआ. उस ने शीना से कहा तो वह अचंभित थी. दुख के मारे ज्यादा सोच नहीं पाई फिर भी उस ने भविष्य में ध्यान रखने की बात कही. अब तक की गलतियों के लिए यही कह कर माफी मांगी कि वह सोचती थी कि शायद सरोज ही उन्हें भेजती है. खैर, अब सरोज व उस के पति शीना के घर साथसाथ आते हैं.
कई बेचारे भी तो हैं
ज्योतिका ने पति को अकसर देरसवेर किसी महिला से बात करते देख कर पूछा तो वह बोला कि उन के कार्यालय की महिला है जो हाल ही में अपना पति खो बैठी है. अब उस बेचारी का कौन है? ज्योतिका ने गुस्से में कहा, ‘‘आप जैसे कई बेचारे भी हैं.’’
उस की बात का आशय था कि दफ्तर की बातें दफ्तर तक सीमित रहें. एक सीमा तक ही किसी की सहायता की जाए. इसी से अपना व दूसरों का भला हो सकता है. सिर्फ मिलनेजुलने, मन बहलाने तथा छोटीमोटी चीजों की सहायता समस्या का हल नहीं है. अच्छा हो कोई ऐसी मदद की जाए जिस से उसे जीवन का आधार मिले, स्वावलंबी बनने का अवसर मिले.