अधिकांश मातापिता अपने बच्चों से प्यार तो खूब करते हैं लेकिन उन की शैतानियों से तंग आ कर अकसर घर आए मित्रों, मेहमानों या रिश्तेदारों से मजाकमजाक में उन की ढेर सारी शिकायतें कर देते हैं. निश्छल और कोमल मन के बच्चों को ये बातें बिलकुल अच्छी नहीं लगतीं. कई बार तो इन बातों का उन पर ऐसा गहरा असर पड़ता है कि वे अंतर्मुखी हो जाते हैं, खुद में सिमट कर रह जाते हैं और धीरेधीरे उन की सामान्य गतिविधियां और खिलंदड़पन कुंद पड़ने लगते हैं. बच्चे आप की बातों का बुरा न मान जाएं, इस के लिए आप को उस की अग्रलिखित बातों की चर्चा दूसरों के सामने कतई नहीं करनी चाहिए.

बोलचाल पर आक्षेप

बहुत से बच्चे शुरूशुरू में तुतला कर बोलते हैं. यह स्वाभाविक है क्योंकि स्वरों और शब्दों पर उन की सही पकड़ तब नहीं हो पाती. ज्यादातर मामलों में लगातार दूसरों से सही उच्चारण सुनने और अभ्यास के बाद उन की यह कमजोरी खुद ही दूर हो जाती है. लेकिन जब मातापिता या बडे़ भाईबहन दूसरों के सामने उन की खिल्ली उड़ाते हैं और नकल करते हुए तुतला कर बोलते हैं तो बालमन आहत हो जाता है. इस से बच्चे का आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वह बोलने से कतराने लगता है. नतीजतन, वार्त्तालाप करने का उस का अभ्यास भी कमजोर पड़ने लगता है और यह कमजोरी कई बार बड़े होने तक बनी रह जाती है.

बच्चे की समझ को समझें

कुछ ओवरस्मार्ट मातापिता अपने बच्चे से वयस्कों जैसी त्वरित प्रतिक्रिया और परिपक्व विचारों की उम्मीद करते हैं. जबकि बच्चा तो अपनी समझ के अनुसार ही रिऐक्ट करेगा. कई बार उसे बातें समझने में देर लग जाती है और फिर जवाब या प्रतिक्रिया के लिए सही जवाब या शब्द ढूंढ़ने में भी वक्त लगता है. यह सहज बात है क्योंकि वह इस दुनिया में नया है, उस का शब्द भंडार सीमित है और अनुभव भी बहुत कम होता है. स्वाभाविक है कि उस की संप्रेषण क्षमता बड़ों जैसी नहीं हो सकती. बच्चे बड़ों की तरह बातों को मौनिटर नहीं करते और अपनी बात अलग तरीके से कहते हैं. कई मातापिता इस बात को नहीं समझते और बच्चे को ‘ट्यूबलाइट’ का दरजा दे डालते हैं. ऐसा करना अपने बच्चे की मानसिक क्षमता के साथ खिलवाड़ करना है. उन पर टौंट करने के बजाय उन से ज्यादा से ज्यादा संवाद करें ताकि उन की संवाद क्षमता में निखार आए.

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