जीवन में हर व्यक्ति का उद्देश्य शिखर तक पहुंचना होता है. युवावस्था में सभी अपना लक्ष्य निर्धारित ही नहीं करते बल्कि उसे प्राप्त करने के लिए प्रयत्न भी करते हैं. यह उम्र अनेक सपने संजोने की होती है. कोई ऐक्टर बनना चाहता है तो कोई लेखक, कोई डाक्टर तो कोई सिंगर. युवा ऐसे ही न जाने कितने सपने देखते हैं. परंतु समय बीतने के साथसाथ उन के ये सपने धुंधले हो जाते हैं और कुछ साल बाद समय के साथ समझौता करते हुए वे अपना लक्ष्य भूल जाते हैं.

जीवन के अगले पड़ाव पर वे परिस्थितियों तथा लोगों पर दोषारोपण कर के अपनी नाकामी स्वीकार करते हैं. वास्तव में यदि हम विचार करें तो हमें जीवन में जो भी उपलब्धि हासिल होती है उस का सारा श्रेय हमें ही जाता है. यदि हम सफल हैं तो उस में भी हमारा दृढ़ निश्चय और इच्छाशक्ति का ही हाथ होता है और यदि हम असफल रहते हैं तो भी इस का कारण हम में आत्मविश्वास तथा सतत प्रयास की कमी ही होता है.

सुखदुख, उतारचढ़ाव, आर्थिक कठिनाइयां, स्वास्थ्य व पारिवारिक समस्याएं सभी के जीवन में आती हैं, लेकिन वे व्यक्ति ही श्रेष्ठ होते हैं जो चुनौतियों से हार न मान कर उन्हें स्वीकार कर आगे बढ़ते हैं. आइए, ऐसे ही कुछ उदाहरण हम देखते हैं :

विश्व प्रसिद्ध लेखिका हेलन केलर 2 वर्ष की भी नहीं थीं कि उन की सुनने की क्षमता तथा आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन हेलन ने परिस्थितियों को दोष देने के बजाय चुनौतियों को स्वीकारा. उन्होंने बधिर और दृष्टिहीन होते हुए भी स्नातक की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने न केवल खुद शिक्षा प्राप्त की बल्कि श्रमिकों और महिला मताधिकार के लिए भी अभियान चलाया. हेलन ने अनेक पुस्तकें भी लिखीं. इन्हीं चुनौतियों ने उन्हें श्रेष्ठ बना दिया.

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