अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले यात्रियों की बस पर आतंकवादियों का हमला साफ करता है कि देश में अभी धर्मयुद्ध के थमने के आसार नहीं हैं और यह भी पक्का है कि इस में काफी युवाओं का भविष्य मिट्टी में मिलेगा. 2002 में गोधरा में एक ट्रेन में आग लगने के कारण हुई 59 यात्रियों की मौतों के लिए मुसलिम समुदाय को जिम्मेदार ठहरा कर महीनों तक गुजरात के विभिन्न शहरों में आम निर्दोष मुसलिमों से बदला लिया गया था. तब भी हजारों युवाओं ने मारने में साथ दिया था और सैकड़ों मरे थे.

धार्मिक विवादों में सदियों से युवा शिकार बनते रहे हैं. धर्मरक्षा के नाम पर जब भी कोई बखेड़ा खड़ा होता है, युवाओं को आगे कर दिया जाता है और बुजुर्ग, धर्म के दुकानदार, नेता, अमीरउमराव पीछे से संचालन करते रहते हैं. मरने वाले भी युवा ही होते हैं, मारने वाले भी. पश्चिमी एशिया में आतंकवाद की राह पर चल रहे इसलामिक स्टेट की विचाराधारा वाले मुसलिमों के दूसरे मुसलिमों के साथ युद्घ में मारने वाले मुसलमान, मरने वाले मुसलमान और शरणार्थी बने बच्चे भी मुसलमान, ज्यादातर युवा या युवा होने की दहलीज पर खड़े.

भारत में गौरक्षकों की जो फौज तैयार हो रही है उस में युवा ही हैं. वे गुट बना कर किसी भी पशु व्यापारी को रोक कर मारपीटने का हक रखते हैं क्योंकि सरकारों ने पुलिस से कह रखा है कि इस तरह के मामलों में वह आंख मूंद कर रखे. पशु व्यापारियों को नुकसान होता है, वह अलग. पर बड़ी महत्त्व की बात यह है कि युवाओं को हिंसा की लत पड़ जाती है. उन्हें यह एहसास हो जाता है कि कानून के कागजी महल में छेद करना बहुत आसान है.

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