प्ले स्कूल चलाना अब खासे मुनाफे का धंधा बन रहा है. एस. श्रीनिवास रेड्डी, जो हैदराबाद के प्ले स्कूलों के एक ऐसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, का कहना है कि प्ले स्कूल चलाने के लिए किसी अनुमति की जरूरत नहीं होती. 20,000-25,000 में जगह किराए पर लो, 2-3 शिक्षक और 2-3 आयाएं रखो और साल में 50 से 100 बच्चों से क्व20,000 से 25,000 तक की फीस पा लो. यह हिसाब सारे देश में एक जैसा है. ऐसा नहीं है कि मातापिता नहीं जानते कि प्ले स्कूलों में क्या हो रहा है. पर उन्हें बच्चों को प्ले स्कूलों में भेजना होता ही है जहां बच्चे अपने हमउम्र बच्चों के साथ मिल खेल सकें और कुछ पढ़ना, कुछ गाना, कुछ अनुशासन, कुछ घर से बाहर रहना सीख सकें.

व्यावसायिक होते हुए भी मांओं के लिए ये प्ले स्कूल आवश्यक हैं और किसी खास अनुमति की आवश्यकता न होना एक वरदान है. अनुमति से तो फीस बढ़ जाएगी, क्वालिटी बढ़े या न बढ़े. इन स्कूलों को हर तरह की छूट मिलती रहे यह जरूरी है. वास्तव में तो हर अकेले रिटायर्ड दंपती को अपने घर में प्ले स्कूल खोलने के लिए उत्साहित करें. इस से उन का समय बीतेगा, कुछ आय होगी और खाली घर का सदुपयोग भी होगा.

इन स्कूलों में खराबी यही है कि फैशन के चलते ये स्कूल बच्चों पर अंगरेजी थोप रहे हैं. बच्चों को तो वह बोलने की आदत होती है, जो घर में बोला जाता है. अगर घर में हिंदी, तमिल या तेलुगु बोली जाती है तो वे स्कूल में भी वही बोलेंगे पर शान के कारण उन्हें अंगरेजी मारपीट कर सिखाई जा रही है. बड़े शहरों में तो अंगरेजी पढ़ेलिखे शिक्षक मिल भी जाएं पर छोटे शहरों में ये नहीं मिलते और वहां बच्चे न अपनी भाषा सीखते हैं न अंगरेजी.

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