इसलामी आतंकवादियों से प्रभावित एक और अकेले आतंकवादी ने लंदन में पार्लियामैंट बिल्डिंग के सामने महज 82 सैकंड में लंदन को ही नहीं, सभी सभ्य देशों को एक बार फिर दहला दिया. हालांकि इस हमले में मरे कम जबकि हर रोज दुर्घटनाओं में मरने वाले कहीं ज्यादा होते हैं लेकिन इंगलैंड में ही जन्मे खालिद मसूद के लंदन अटैक ने सैकड़ों सवाल छोड़ दिए.

चाहे मरने वाले 3 ही हों पर नीयत का फर्क है और कोई भी समाज इस तरह के आक्रमण पर गुस्सा तो होगा ही. आज कठिनाई यह है कि मुसलिम आतंकवादियों की एक बड़ी फौज पैदा हो गई है जो कब, कहां आक्रमण कर दे पता नहीं चलता. इन आतंकियों के आक्रमण का निशाना सरकारें या सेनाएं नहीं होती हैं, ये आम आदमियों को निशाना बनाते हैं.

धर्म के नाम पर इतने ज्यादा लोगों के दिमाग की सफाई की जा चुकी है कि वे कहीं भी, कभी भी आक्रामक हो सकते हैं और वे खुद मरने से डरते नहीं हैं. लंदन पर हमला करने वाला खालिद मसूद इसलामिक स्टेट से सीधे जुड़ा था या नहीं, यह साफ नहीं है. मूलतया 52 वर्षीय मसूद की पैदाइश ब्रिटेन की ही है और इसे बाहरी आतंकवादी नहीं कहा जा सकता. ब्रिटेन में पैदा हुआ, पढ़ा और काम किया, फिर भी धर्म की घुट्टी का असर यह है कि उस ने निर्दोषों, निहत्थों को बेबात में कुचल दिया.

जो कहते हैं कि धर्म कोई खराब काम नहीं सिखाता, असल में धर्म के प्रचार के कारण वे इतने ज्यादा दिमागी पंगु हो जाते हैं कि उन्हें वही दिखता है जो दिखाया जाता है. धर्म के दुकानदार का कहा सत्य अकेला सत्य ही बन जाता है. धर्म के नाम पर वे भरपूर पैसा तो देते ही हैं, अपनी आजादी देने से भी कतराते नहीं हैं और दूसरे की छीन लेना चाहते हैं. धर्म कोई सही पाठ पढ़ाता हो, इस का सुबूत धार्मिक ग्रंथों में कम मिलेगा. हां, धर्म के दुकानदार झूठ बोलने में इतने माहिर होते हैं कि वे दोषोंभरे अपने ग्रंथों को महान साबित कर सकते हैं और गलती पर अतार्किक उत्तर दे भी सकते हैं.

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