दुनियाभर में लोकतंत्र नहीं, वोटतंत्र फेल हो रहा है. वोटों से चुन कर आने वाले शासक देश, समाज, विश्व व जनता के लिए भले का काम करें, अब यह अनिवार्य नहीं रह गया है. एक समय पहले लोकतंत्र की पहली शर्त निष्पक्ष चुनाव थे जिस में हर व्यक्ति को अपनी इच्छा से वोट देने का हक हो. जिन देशों में यह हक जितना ज्यादा मजबूत था, उन्हें उतना ज्यादा लोकतांत्रिक, उदार, स्वतंत्र व भेदभाव रहित माना जाता था. अब ऐसा नहीं. अब कई देशों में लोकतंत्र से ऐसे नेता उभर रहे हैं जो न केवल अन्य देशों के लिए बल्कि अपने समर्थक वोटरों के लिए भी खतरा बन रहे हैं. अमेरिका का उदाहरण तो भयावह है जहां चुनावी प्रक्रिया जटिल है और शासकनेता को एक नहीं, कईकई चुनावी परेशानियों से गुजरना पड़ता है. वहां डोनाल्ड ट्रंप ने न केवल अपनी बकबक के बावजूद बाधाएं सफलता से पार कर लीं बल्कि चुनाव जीत कर राष्ट्रपति बनने के एक सप्ताह में ही अमेरिका की राजनीति, विदेश नीति, घरेलू नीति, स्वास्थ्य नीति, जौब नीति को भी उथलपुथल कर दिया. आने वाले समय में क्याक्या होगा, नहीं मालूम.

अमेरिकी संविधान में एक चुने राष्ट्रपति को हटाना आसान नहीं है और न ही उस की मनमानी को रोकना. इंगलैंड में वोट के सहारे हुए जनमत में ब्रिटेन की जनता ने यूरोपीय संघ से निकलने का आत्मघाती फैसला ले लिया है. फ्रांस में मेरीन लेपे की नैशनल फ्रंट नामक अतिवादी पार्टी उभर रही है. रूस में ब्लादिमीर पुतिन वोटों के सहारे ही सत्ता में आए थे, उन्हें थोपा नहीं गया था. भारत में नरेंद्र मोदी को स्वच्छ सरकार, अच्छे दिन, कालाधनमुक्त भारत के लिए भारी बहुमत से चुना गया पर नरेंद्र मोदी ने केवल नोटबंदी जैसा गलत फैसला ही नहीं लिया, उन्होंने रिजर्व बैंक पर कब्जा भी कर लिया, लोकसभा को निरर्थक बना दिया, मंत्रिमंडल को नकार दिया. अपनी बात को मनवाने के लिए उन्होंने दूसरे दलों में तोड़फोड़ करवा दी. ऐसे में भारत में लोकतंत्र की चूलें हिलने लगी हैं. भारत में ऐसा पहले इंदिरा गांधी के जमाने में हुआ था. जब तक जयललिता तमिलनाडु में थीं, वे अपने को पुजवाती थीं. देश में नेताओं के जूते साफ करने वाले अफसरों की भी कमी नहीं है.

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