जिस के हाथ में बंदूक और ऊपर से सरकार का भगवा कवच हो, उस की शक्ति तो अपरंपार है. ऐसा हमारे ग्रंथों में लिखा है, बस, फर्क यह है कि वहां बंदूक की जगह तीरकमान या चक्र होता था. उत्तर प्रदेश पुलिस चूंकि राम और कृष्ण की भूमि की है, उस के पास ग्रीन सिगनल है कि वह इन अधिकारों का निश्चिन्त हो कर उपयोग करे.

सितंबर के अंतिम दिनों में लखनऊ में जिस कौंस्टेबल ने कार न रोकने पर उस के चालक को रिवौल्वर की गोली से मार डाला, उस ने कोई गुनाह नहीं किया. वह तो मृतक विवेक तिवारी को उस के पापों का फल मिला है और कौंस्टेबल प्रशांत अपने ऊपर वाले द्वारा दिए अधिकारों का पालन कर रहा था. स्वयं ईश्वर के अवतार ने आदेश दे रखा है कि प्रदेश के सारे दस्युओं को मारमार कर समाप्त कर दो चाहे उन के अपराध साबित हुए हों या न हों. दस्युओं का उन्मूलन करना हर ऋषिमुनि और उन के इशारों पर चल रहे दासों का प्रमुख कर्तव्य है. उत्तर प्रदेश व दूसरे कई राज्यों की सरकारें इसे भलीभांति निभा भी रही हैं.

पुलिस हर देश में निरंकुश ही होती है. उम्मीद थी कि हमारा लोकतंत्र और मीडिया उस पर नकेल कसने में सफल होंगे पर लगता है यह केवल खयाली पुलाव है. जिस विवेक तिवारी को बिना अपराध किए मार डाला गया है उस पर रोष प्रकट करने से कुछ नहीं होगा. ऐसा करना, असल में, राष्ट्रद्रोहियों के हाथों में खेलना होगा. यह स्पष्ट है कि आज हर पुलिस अफसर स्वयं शक्तिपुंज है और उसे अपने मुख्यमंत्री से अभयदान मिला हुआ है.

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