फिल्मी सितारों में से कुछ का बढ़ती कट्टरता के खिलाफ मुंह खोलना आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि जहां भी विचारों की अभिव्यक्ति की बात हो वहां दूसरे की सुनने का कर्तव्य, बोलने के अधिकार का हिस्सा है और सिनेमा कहता है तो दूसरे सुनते हैं. देश में भगवाधारी जो माहौल बना रहे हैं यदि इसी तरह परतदरपरत बढ़ता रहा तो देश की सोच की शक्ति उत्तरी कोरिया या अफगानिस्तान की तरह की सी हो जाएगी, इस में शक नहीं.

शाहरुख खान जैसे मुसलिम ऐक्टर आमतौर पर इस तरह के मामलों में डर के कारण दखल नहीं देते क्योंकि उन के प्रशंसकों में हर तरह के लोग होते हैं. सो, वे विवाद से बचना चाहते हैं. देश में बिजनैस के शिखर पर बैठे अभिनेता अमिताभ बच्चन कितने ही सद्व्यवहार के पाठ पढ़ा लें पर इस पोंगापंथी के खिलाफ मुंह नहीं खोल रहे क्योंकि वे तो खुद महापोंगापंथी हैं जिन्होंने अपनी रेड्डी बहू को अपनाने से पहले कई अपमानजनक पाखंड कराए थे. वे भगवाई आदेशों को बुरा किस मुंह से कहेंगे. वे तो देश के सारे मंदिरमसजिदों में सिर झुका आए हैं- फिल्मी नाटकीयता के कारण या किसी दिमागी दिवालिएपन के कारण.

शाहरुख खान की देश में बढ़ती धार्मिक असहनशीलता के प्रति चिंता सच है, बनावटी नहीं. यह हर जगह दिखने लगी है. बिहार के चुनावों में बढ़चढ़ कर दिखी. दिल्लीमुंबई में दिख रही है. गांवों की गलियों में दिख रही है. फेसबुक, व्हाट्सऐप और ट्विटर पर दिख रही है.

अगर हमारी नहीं मानोगे तो पाकिस्तान भेज देंगे, हमारा समर्थन नहीं करोगे तो देशद्रोही कहेंगे, हमारी बात पर मोहर लगा दो वरना हमारी पुलिस तुम्हारा काम तमाम कर देगी, हमारे जैसे बनो वरना हमारी भीड़ तुम्हारा घर जला देगी. यह हठधर्मी आज धर्म का हिस्सा बन गई है और शाहरुख खान उन हजारों में से एक हैं जिन्हें चिंता है कि इस तरह से देश फिर काला उपमहाद्वीप बन जाएगा. पाकिस्तान और बंगलादेश तो पहले ही वैचारिक अंधकार में डूबे हैं और अच्छे दिनों की रोशनी इतनी जल्दी काली आंधी में तबदील हो जाएगी, यह सोचा न था.

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